09 फ़रवरी, 2022

चांदनी रात में




 

चांदनी रात में जंगल में रहे 

प्रकृति से जुड़े एहसास अनोखा हुआ 

सर्दी में रात यहाँ जब भी गुजारी

भाँति भाँति के स्वर कानों में गूंजे  |

पहचान  हुई वहां आदिवासियों से

उनके तौर तरीको से 

खान पान की आदतों से

पूजन अर्चन के तरीकों से

अपनाई गई वहां संस्कृति से |

है भारत इतना विशाल  कि विविध संसकृतियां जानना कठिन 

  भाषा वैविध्य सरलता से पहचाना जाता

पर रीति रिवाज जुदा एक दूसरे से |

अनेकता में एकता है भारत की विशेषता

 सभी जन एक दूसरे से रखते स्नेह

 भेद नहीं आपस में करते 

 मिलते सब स्नेह से जब भी मिलते |  

पर्यावरण प्रकृति और मानव का

होता भिन्न पर बड़ा संतुलन रहता

 आगे बढ़ते जब प्रकृति की गोद में

 बड़ा तालमेल रहता आपस में |  

हम उनके वे मित्र हमारे 

यहाँ के सभी हैं रहने वाले

 है लगाव गहरा हमें अपने देश से

जन्में हम देश के लिए |

कितनी भी समस्याएँ आएं

हमारी जड़ें हैं इतनी गहरी

कोई अलग नहीं कर सकता

हमें हमारे अपनों से |

आशा 

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4337 में दिया जाएगा| आप इस चर्चा तक जरूर पहुँचेंगे, ऐसी आशा है|
    धन्यवाद
    दिलबाग

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      आभार दिलबाग़ जी आज के चर्चा मंच अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए |

      हटाएं
  2. अनेकता में एकता है भारत की विशेषता
    सभी जन एक दूसरे से रखते स्नेह
    कोई भेद नहीं करते आपस में
    सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद मीना जी टिप्पणी के लिए |

      हटाएं
  3. सुप्रबत
    आभार रविन्द्र जी पांच लिंकों के आनंद के आज के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ! बहुत ही सुन्दर रचना ! सुन्दर अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया आशा जी। कितना आनन्द आया होगा आदिवासियों के साथ चांदनी रात में रात गुजार कर। अभावों से घिरे आदिवासी समाज में वैमनस्य की गुंजाईश ही कहां बचती है? ढेरों शुभकामनाएं इस रोचक शब्द चित्र के लिए 🙏🙏🌷🌷

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: