चांदनी रात में जंगल में रहे
प्रकृति से जुड़े एहसास अनोखा हुआ
सर्दी में रात यहाँ जब भी गुजारी
भाँति भाँति के स्वर कानों में गूंजे |
पहचान हुई वहां आदिवासियों से
उनके तौर तरीको से
खान पान की आदतों से
पूजन अर्चन के तरीकों से
अपनाई गई वहां संस्कृति से |
है भारत इतना विशाल कि विविध संसकृतियां जानना कठिन
भाषा वैविध्य सरलता से पहचाना जाता
पर रीति रिवाज जुदा एक दूसरे से |
अनेकता में एकता है भारत की विशेषता
सभी जन एक दूसरे से रखते स्नेह
भेद नहीं आपस में करते
मिलते सब स्नेह से जब भी मिलते |
पर्यावरण प्रकृति और मानव का
होता भिन्न पर बड़ा संतुलन रहता
आगे बढ़ते जब प्रकृति की गोद में
बड़ा तालमेल रहता आपस में |
हम उनके वे मित्र हमारे
यहाँ के सभी हैं रहने वाले
है लगाव गहरा हमें अपने देश से
जन्में हम देश के लिए |
कितनी भी समस्याएँ आएं
हमारी जड़ें हैं इतनी गहरी
कोई अलग नहीं कर सकता
हमें हमारे अपनों से |
आशा
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4337 में दिया जाएगा| आप इस चर्चा तक जरूर पहुँचेंगे, ऐसी आशा है|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
सुप्रभात
हटाएंआभार दिलबाग़ जी आज के चर्चा मंच अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए |
अनेकता में एकता है भारत की विशेषता
जवाब देंहटाएंसभी जन एक दूसरे से रखते स्नेह
कोई भेद नहीं करते आपस में
सुन्दर सृजन ।
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद मीना जी टिप्पणी के लिए |
सुप्रबत
जवाब देंहटाएंआभार रविन्द्र जी पांच लिंकों के आनंद के आज के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए |
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment ji
हटाएंवाह! सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment shubus
हटाएंसुंदर और सरल अवलोकन
जवाब देंहटाएंThanks for the comment ji
हटाएंवाह ! बहुत ही सुन्दर रचना ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sadhna
हटाएंThanks for the comment sadhna
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आशा जी। कितना आनन्द आया होगा आदिवासियों के साथ चांदनी रात में रात गुजार कर। अभावों से घिरे आदिवासी समाज में वैमनस्य की गुंजाईश ही कहां बचती है? ढेरों शुभकामनाएं इस रोचक शब्द चित्र के लिए 🙏🙏🌷🌷
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएं