या कोई सलाह नहीं देता |
यदि कोई कुछ कहता भी है
मानने को तैयार न होता
इसी आदत से हूँ लाचार
सब सोचते हैं पर बोलते नहीं |
मैं हूँ परेशान
परेशानी की कोई सीमा नहीं
क्या करें ?
किसी की कही बात पर
ध्यान नहीं देती |
मनमानी की आदत है
जैसी भी है उसी में
मेरा मन उलझा रहता
सोचती रहती हूँ |
सब ख़ुद ही करना चाहती हूँ
गलत हो या सही हो
यदि किसी ने टोक दिया
मुझे सहन नहीं क्या करें ?
आशा
अगर ऐसा है तो जो अब तक होता आ रहा है वैसा ही होता रहेगा, मन ऐसे ही परेशान रहेगा
जवाब देंहटाएंअनीता जी धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-3-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4379 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति सभी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंआभार दिलबाग जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
मन को थोड़ा विश्राम भी देना चाहिए ना ! चिंता बढाने वाले कारकों से ध्यान दूर हटा कर कुछ सृजनात्मक करना चाहिए ! सार्थक सृजन से संतोष भी मिलेगा चिंता भी मिटेगी !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सरिता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंअति सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भारती जी टिप्पणी के लिए |
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