उसके ख्यालों में आना
आँख मिचौली खेलते रहना
जज्बातों से उसके खेलना
तुम्हें शोभा नहीं देता |
अपने पर रखो नियंत्रण
किसी को दो न अवसर
उंगलियां उठाने का
कुछ अनर्गल बोलने का |
यह अधिकार भी
तुम खो चुके हो
अपनी मनमानी करके
अकारण उससे उलझ के |
वह कोई गूंगी गुडिया नहीं
जो कभी न बोले
अपने अधिकार जानती है
तुम्हें पहचानती है |
जितनी दूरी बना कर चलोगे
खुद पर नियंत्रण रखोगे
तभी उसे पाने में सफल रहोगे
यही एक तरकीब उसे
तुम तक पहुंचाएगी |
जब वह लौट कर आएगी
एक नए रूप में होगी
जिसे दिल से अपनाना
पर हमें तब भूल न जाना |
आशा
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.03.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4365 दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति सभी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
सुप्रभात
हटाएंआभार विर्क जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
मर्मस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंसादर।
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद स्वेता जी टिप्पणी के लिए |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कविता जी टिप्पणी के लिए |
बहुत उम्दा । सुंदर भावाभिव्यक्ति ।
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