मैंने तुम से बहुत कुछ सीखा
है
शयद कुछ और नहीं
कई बार कभी तालमेल न हो
पाता
मुझे बहुत क्रोध आता था
तभी मैं जान पाती था अपनी
कमियाँ
अपने पर नियंत्रण रख पाना
बहुत कठिन होता था
मुझे लज्जा का अनुभव होता
फिर आंसुओं का सैलाब उमढता
उन्हें पौछ्पाने के लिए
कोई रूमाल आगे नहीं आता
यह अधिकार केवल तुम्हें
दिया था मैंने |
अब सोचती हूँ कौन
सांत्वना देगा
अब मुझे तुम न जाने किस
दुनिया में खो गए हो
अब कैसे अपना समय बिताऊंगी
जीवन माना क्षणभंगुर है
क्षण क्षण बिताना बहुत कठिन है
|कभी लगता है तुम्हें मुक्ति मिल गई है
बस एक ही बात का दुःख है
तुमने मुझे अकेला अधर में
क्यों छोड़ा
अपना वादा क्यों तोड़ा |
आशा लता सक्सेना
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8.9.22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4546 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबाग
बहुत खूब। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंभावपूर्ण मार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंकिसीने वादा नहीं तोड़ा ! व्यर्थ ही आरोप न लगाएं ! जो कुछ होता है वह इश्वर की इच्छा से होता है ! हम सब इस संसार में तभी तक दिखाई देते हैं जब तक ईश्वर चाहता है ! हमारी भूमिका समाप्त होते ही हमारा जीवन भी समाप्त हो जाता है ! यही विधि का विधान है ! अपनी मर्जी से कोई नहीं जाता !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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