जब बांह थामी थी मेरी 
वादा किया था साथ निभाने का
जन्म जन्मान्तर का साथ अधूरा क्यों छोड़ा?
आशा न थी मध्य मार्ग में बिछुड़ने की
उस वादे का क्या जो जन्म जन्मान्तर तक
 साथ निभाने का किया था 
जब किया वादा सात वचनों का
मुझे अधर में छोड़ा और विदा हुए
यह भी न सोचा कि मेरा क्या होगा `
जीवन की कठिन डगर एक साथ पार की
जब सारी जुम्मेदारी मिलकर झेली
फिर जीवन से क्यूँ घबराए 
मुझे भी तो संबल की आवश्यकता थी तुम्हारी
यह तुम कैसे भूले न कुछ कहा न सुना
मेरे मन को झटका लगा यह क्यूं भूले
अकेली मुझे मझधार में छोड़ दिया
जाते तब पता अपना तो बता जाते
मैं भी तुम्हारे पीछे आ जाती
बाधाओं से न घबराती
आशा लता सक्सेना 
                                                                                               
 
 
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जीवनसाथी का जाना अकेला कर जाता हैं भारी भीड़ में भी साथी को। मर्मस्पर्शी। एक-दूजे का सम्बल जरुरी होता है जीने के लिए
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंमर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना ! मन को शांत और संयत रखिये और रचनात्मक एवं सकारात्मक रहिये ! जो भी होगा ठीक ही होगा !
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-9-22} को "श्रद्धा में मत कीजिए, कोई वाद-विवाद"(चर्चा अंक 4549) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जीवन साथी क़े साथ छोड़ जाने का दर्द बयां करती सुंदर रचना❗️--ब्रजेन्द्र नाथ
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