जीवन जीने का मन न हुआ
कितना भी यत्न किया 
एक बार जो मोह की गाँठ लगी 
खुल नहीं पाई तोड़नी पडीं |
मन की उदासी कम होने का 
नाम ही  नहीं लेती
 बिना बात उलझाए रखती 
यह भी  नहीं बताती कारण क्या हुआ |
कारण यदि पता होता 
इतनी उलझन न होती 
कोई  मार्ग निकल ही आता 
जीवन में उदासी न होती |
आखिर कब तक उलझी रहूँगी 
दुनिया के प्रपंचों में 
किस तरह मुक्ति पाऊँगी 
दुनियादारी के झमेलों से |
हे प्रभु मदद करो मेरी 
तुम्हारी शरण में मैं आई 
इतनी दया करो मुझ पर 
मन की शांति बापिस करो मेरी |
आशा सक्सेना
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उदासी का यह अस्थाई फेज़ भी गुज़र जाएगा ! सकारात्मक रहिये और सृजन में ही मन का सुकून ढूँँढिए !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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