दहन किसका होगा
क्या दस शीश का ?
या सामाजिक कुरीतियों का
जो अब तक समाप्त न हो पाईं ?
रावण दहन की रीत में
हम अपने आप से हर वर्ष
कई वादे करते खुद से
कुरीतियां त्यागने
के लिए |
पर वादा पूरा करने में
सफल
न हो पाते
मन में असंतोष और बढा लेते
पर वादे को पूरा न कर पाते |
यही कमी है खुद में
तब कौन हमारा साथ देगा
तब कौन हमारे साथ चलेगा |
सब चाहते सच्चे मित्र का साथ
जो खुद हो अपने वादे का पक्का
वख्त पर आकर खडा हो
गलत को नजरअंदाज न करे
गलती बताए |
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंआभार रवीन्द्र जी, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आज के अंक में |
जवाब देंहटाएंलाज़बाब रचना
जवाब देंहटाएंभीड़ का विवेक खो जाता है .
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत बढ़िया प्रस्तुति ! सार्थक सृजन !
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