कविता का गीत बड़ा मदिर
सब से मीठा सब से मंहगा
गाने के शब्द भी चुन लिए
कोमल भावों को सजाया वहां |
मधुर धुन उसकी गुनगुनाती
एक आकर्षण में बहती जाती
कलकल कर बहती नदिया सी
लहरों पर स्वरों संगम होता |
यही विशेषता है उन दौनों में
एक ही ताल पर शब्दों का थिरकना
मनभावन रूप में सजाए जाना एक नया
रूप दिखाई देता गीत जीवंत हो जाता |
आशा सक्सेना
आपने दार्शनिक अनुभव से जन्मी रचना … बहुत सुंदर …
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नसवा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आभार रवीन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंऐसी रचनाएं ही कालजयी हो जाते हैं ! सुन्दर सृजन !
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