वह कृपावन्त हुआ तुम पर
पर फल की आशा न की जब
अति प्रसन्न हुआ |
मेरे मन ने यह माना
बिना मांगे मोती मिले
मांगे मिले न भीख
जो सोचो सच्चे मन से चाहो
प्रभु की नजर पड़ जाए अगर
वह हाथ बढ़ाना चाहे
यदि दृढ़ आस्था रही तुम्हारे मन में |
तुम मन से सच्चे रहो
कोई कमी नहीं छोड़ी तुमने
हुई कृपा ईश्वर की तुम पर
यही दिया तुम्हें खुले हाथ से उसने |
अपना हक़ न समझो इसे तुम
यदि जो मिला उस पर गर्व किया
यही तुम्हारी भूल समझ
पहली गलती मान क्षमा किया तुमको |
कभी करना नहीं गुमान अपनी प्राप्ती पर
इशारे से समझ लेना भूल को
तभी सफल रहोगे जब याद करोगे बिना प्रलोभन
प्रभु भी जानता है तुम्हारी मांग को |
वह भी परिक्षा ले रहा तुम्हारी
तुम भी अनजाने में उसे याद करते हो दिल से
किसी का बुरा नहीं चाहते
यही विशेषता है तुममें |
तुम हो उसकी पहली पसंद
है वह मोहित तुम पर
तुम्हारा व्यवहार है सब से जुदा
हो सब से भिन्न सफल रहो जीवन में |
आशा सक्सेना
अबू बेन आदम की कहानी याद आ गयी ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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