दिन बीता सूर्य की तीव्रता मंद हुई
सूर्य की तीव्रता में विखराव आया
आदित्य पीतल की थाली सा दिखा
धीरे धीरे अस्ताचल को जा पहुंचा |
पेड़ों के पीछे छिपा पर दृश्य आकर्षक हुआ
चन्दा आसमान में चमका तारों के संग
रात के आने की प्रतीक्षा रही उसे
वायु बेग भी कम हुआ उसकी गति धीमीं हुई |
वह छवि बार बार मुझे आकृष्ट करती
उस दृश्य को भी प्रतीक्षा थी हमारे
आने की
रात्री जागरण जंगल में करने की
जंगल में मंगल मनाने की |
समय कब कटा मालूम ही नहीं पड़ा
उस नज़ारे का आनंद उठाने की
हमने भी यत्न किया खुले आसमान में जाने का
चांदनी रात का आनन्द लेने का
तारों को आसमान में विचरण करते देखने का |
कोई तारा छोटी पूंछ लिए था
उसको पुच्छल तारा कहा
आकाश गंगा में तारों की भरमार देखी
कभी तारों को गिनने की कोशिश की
पर असंभव को संभव कर न सके|
पर अफसोस नहीं हुआ कारण समझ लिया था
तभी लोगों का प्रयत्न भी पूर्ण न हो सका था
समय कब पंख लगा कर उड़ चला
हम यहीं रह गए क्या करते|
हमारे साथ वही सुन्दर दृश्य मन में बसा रहा
मन को संताप तो हुआ पर कोई चारा न था
चल दिए मन मार कर
अपने घर को |
आशा सक्सेना
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |
हटाएंवाह वाह ! चित्रात्मकता का आनंद लिए रोचक रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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