आखिर कब तक तुम्हारे पीछे चक्कर लगाता
अपने मन की एक ना सुनता
तुम से बहुत आशा रखी थी
यहीं भूल हुई मुझसे|
यदि किसी बड़े का कहा माना होता
पर अंध भक्ति नहीं की होती
दिमाग का भी उपयोग किया
होता
अपनी सोच समझ को एक ताले मेंबंद ना रखा होता
जो फल उस समस्या का होता
अपने हित में ही होता |
जो अपना हमें समझते हैं
सही सलाह देते है
बिना बात ना उलझन होती
जीवन में शांति से जीते |
कोई समस्या सरल नहीं होती
दोनो ने मिल हल कर ली होती
मस्तिष्क पर बोझ ना होता
उलझनों में अग्नि के शोले ना भड़कते |
दौनों के मन में संतुलन बना रहता
कोई नही उलझता अकारण
अपनी अपनी राह चुन लेता
उसी पर अग्रसर होता |
आशा सक्सेना
सही है ! समय रहते ही उपचार कर लेने से मर्ज़ और अधिक नहीं बढ़ता है !
जवाब देंहटाएं