चंचल चपल हिरणी जैसी
उन्मुक्त घूमती वनमण्डल में
भय नहीं किसी का उसको
यही तो घर है उसका |
किसी की वर्जना नहीं सहती
रहती बंधन मुक्त होकर
बिंदास बने रहना था अरमान उसका
किसी की बंदिश सहना
नहीं मंजूर उसे|
यदि उसने सोच लिया
उसने सही मार्ग चुना है
वह सही राह पर चल रही
तब अपनी बात पर अड़ी रहती |
कभी पीछे पैर नहीं करती
चाहे कोई कितना भी रोके टोके
मन से एक बार सोचती
फिर पलट कर नहीं देखती |
यही है आत्म विश्वास का चरम
उसका जगता उन्नयन
वह है दीन दुनिया से कोसों दूर
आज के माहोल में बिलकुल सही |
आशा सक्सेना
यही है आत्मविश्वास का चरम । प्रेरक और प्रभावी रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जिज्ञासा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंThanks for the information
जवाब देंहटाएंआज की नारी आत्मविश्वास से भरी हुई है ! सबल है और आत्मनिर्भर भी !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह ! आज के माहौल में बिलकुल सही !
जवाब देंहटाएंगुडी पडवा की शुभ कामनाए |धन्यवाद नूपुर जी
हटाएंनव संवत्सर हम सब के लिए शुभ हो.
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभ कामनाएं |
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