23 अक्तूबर, 2023

बाँसुरी कान्हां की

 

काली कमली पहन पीली कछोटीकमर में बांधी 

हाथ में बांस की बाँसुरिया जब बजाते कान्हां

गाँव की ग्वालिन दौड़ी चली आतीं

हाथों का काम छोड़

राधा रानी राह देखतीं जमुना के तट पर 

कुंजन में कान्हां के इन्तजार में

सब ने एक साथ नृत्य किया

पूरे दिल से रमें उसमें

फिर से जब न्रत्य बंद होता

सब लौटते अपने घरों को  |

 पर राधा को बहुत ईर्ष्या हुई

कान्हां की बासुरी से

उसे अपनी सौतन ठहराया

अपनी नाराजगी दर्शाई 

मीठी मुस्कान लिये कान्हा ने 

राधा की बांह पकड कहा बहुत प्यार से 

 तुम ही तो मेरी शक्ति हो 

यह बॉसुरी सात  सुरों की प्रतिछाया

मै तुम बिन हूँ अधूरा 

तभी तो तुम्हारा नाम  

मेरे नाम के पहले लिया जाता |

आशा सक्सेना    

 

 

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