मेरा प्रभु चाहे
महक चन्दन की
खुश्बू पुष्पों की
सुगंध मिट्टी की|
है ईश्वर की नियामत
यही प्रभू चाहता
अर्पित की मैने
ईश्वर है भाव का भूखा
किसी वस्तु का नहीं |
है वक्त पर मददगार
बिना किसी बाध्यता के
वह सच्ची आस्था को
जानता पहचानता है |
लगाव हो उससे
कोई नहीं भी मांगे
अपने लिए बिना मांगे
सब प्राप्त होता है |
सच्ची आस्था
है
आवश्यक
उसे मनाने को
और कुछ नही चाहिए |
वह खुद ही
जान जाता है
याचक को
क्या चाहिया |
आशा सक्सेना
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंDhanyad
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना ! वर्तनी की त्रुटियों को सुधार लीजिये !
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