है आज दीपक उदास
अकेलापन उसे डसता है
जब से हुआ अपने
सयोगीयों से जुदा |
बैठा है बहुत उदासी से भरा
अपने साथिओं के अभाव मैं
जिनने उसे छोड़ा बिना बात
उसने पाया अकेला खुद को |
उसने सोचा था
वह अकेला ही काफी है
जलने के लिए समीर के साथ
अपने कार्य के लिए |
नहीं आवश्यकता होगी
तेल और बाती की
पर वह जान न पाया
अकेला कुछ नहीं कर सकता |
बिना सहयोग लिए
तेल और बाती का
समीर के बिना भी
कुछ नहीं हो सकता |
जब सब एकत्र हो जाते हैं
मिल जुल कर कार्य
सम्पन्न करते हैं
दीपक जल जाता है
पूर्ण रौशनी के साथ |
मन का अन्धेरा भी
लुप्त हो जाता है
जब घर का कोना कोना
रोशनी में नहाता है |
आशा सक्सेना
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