17 जनवरी, 2024

दरवाजे पर डोली खड़ीहै

 

जीवन में असंतुलन हर समय रहा 

कभी ठहराव नहीं आया 

मैंने कोशिश भी की 

ट्रेन पटरी पर नहीं आई | 

इससे बेचैनी अधिक बढी 

दर्द बढ़ता गया 

सुधार उसमें ना आया 

किसी ने कहा आध्यात्म का सहारा लो 

जिसे   कभी करने का मन न हुआ 

यह भी न कर सकी

पर मन पर नियंत्रण करने की ठानी 

इस में सफल हुई

तब देखा द्वार पर डोली खड़ी हैं

 मुझे राम घर ले जाने के लिए | 

जैसे ही डोली को देखा

मन खोया राम में 

मैं ने जीवन को सफल पाया 

अपने को राम का  आश्रित पाया 


आशा सक्सेना 

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