घंटों  बैठ अपलक निहारा 
आसपास  था जल ही जल 
प्यास जगी बढ़ने लगी |
खारा पानी इतना कि 
बूँद  बूँद जल को तरसा  
गला  तर न कर पाया 
प्यासा था प्यासा ही रहा |
तेरा प्यार भी सागर जल सा 
मन  ने जिसे पाना चाहा 
पर  जब भी चाहत उभरी 
 खारा जल ही मिल पाया |
रही  मन की प्यास अधूरी 
मृग  तृष्णा सी बढती गयी 
जिस जल के पीछे भागा 
मृग  मारीचिका ही नजर आई |
सागर  सी गहराई प्यार की 
आस अधूरी दीदार की 
वर्षों बीत गए
नजरें टिकाए द्वार पर|
नजरें टिकाए द्वार पर|
मुश्किल से कटता हर पल
तेरी राह देखने में
तेरी राह देखने में
आगे  होगा क्या  नहीं जानता 
फिर  भी बाकी है अभी आस 
 और प्यास तुझे पाने की |
आशा  






