07 जनवरी, 2012

स्याही रात की

जब गहराती स्याही रात की
बेगानी लगती कायनात भी
लगती चमक तारों की फीकी
चंद्रमा की उजास फीकी |
एक अजीब सी रिक्तता
मन में घर करती जाती
कहर बरपाती नजर आती
हर आहट तिमिर में |
सूना जीवन उदास शाम
और रात की तनहाई
करती बाध्य भटकने को
वीथियों में यादों की |
बढ़ने लगती बेचैनी
साँसें तक रुक सी जातीं
राह कोई फिर भी
नहीं सूझती अन्धकार में |
क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
इस गहराते तम से
सूरज की किरण झाँकेगी
बंजर धरती से जीवन में |
कभी तो रौशन हो रात
शमा के जलने से
यादों से मुक्त हो
खुली आँखों में स्वप्न सजें |
आशा



17 टिप्‍पणियां:

  1. एक अजीब सी रिक्तता
    मन में घर करती जाती
    कहर बरपाती नजर आती
    हर आहात तिमिर में

    nice poem
    super like

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  2. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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  3. कभी तो रौशन हो रात
    शमा के जलने से
    यादों से हो मुक्त हो
    खुली आँखों में स्वप्न सजें |

    sunder bhav ...aas ki raah dekhte hue ...

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  4. ...सूरज की किरण झाँकेगी
    बंजर धरती से जीवन में... |
    बहुत सुन्दरपंक्तियाँ...!
    मेरी नई रचना पे आपका स्वागत है !
    आभार!

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  5. यादों की वीथियाँ व्यथित ही करती है..अति सुन्दर..

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  6. बढ़िया प्रस्तुति...
    आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  7. यादों से गुज़रती हुयी ... लाजवाब रचना है ..

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  8. बहुत सुन्दर रचना ! शमा जलेगी तो रात भी रौशन ज़रूर होगी और खुली आँखों में सुन्दर सजीले स्वप्न भी ज़रूर सजेंगे ! सार्थक प्रयत्न कभी विफल नहीं होते !

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  9. इस गहराते तम से
    सूरज की किरण झाँकेगी

    वाह! सुन्दर रचना...
    सादर.

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  10. क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
    इस गहराते तम से
    सूरज की किरण झाँकेगी
    बंजर धरती से जीवन में |
    कभी तो रौशन हो रात
    शमा के जलने से
    यादों से मुक्त हो
    खुली आँखों में स्वप्न सजें |

    waah बहुत खूब ...

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  11. बहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना ...

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