जब गहराती स्याही रात की
बेगानी लगती कायनात भी
लगती चमक तारों की फीकी
चंद्रमा की उजास फीकी |
एक अजीब सी रिक्तता
मन में घर करती जाती
कहर बरपाती नजर आती
हर आहट तिमिर में |
सूना जीवन उदास शाम
सूना जीवन उदास शाम
और रात की तनहाई
करती बाध्य भटकने को
वीथियों में यादों की |
बढ़ने लगती बेचैनी
साँसें तक रुक सी जातीं
राह कोई फिर भी
नहीं सूझती अन्धकार में |
क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
इस गहराते तम से
सूरज की किरण झाँकेगी
बंजर धरती से जीवन में |
कभी तो रौशन हो रात
शमा के जलने से
यादों से मुक्त हो
खुली आँखों में स्वप्न सजें |
आशा
एक अजीब सी रिक्तता
जवाब देंहटाएंमन में घर करती जाती
कहर बरपाती नजर आती
हर आहात तिमिर में
nice poem
super like
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
जवाब देंहटाएंकभी तो रौशन हो रात
जवाब देंहटाएंशमा के जलने से
यादों से हो मुक्त हो
खुली आँखों में स्वप्न सजें |
sunder bhav ...aas ki raah dekhte hue ...
...सूरज की किरण झाँकेगी
जवाब देंहटाएंबंजर धरती से जीवन में... |
बहुत सुन्दरपंक्तियाँ...!
मेरी नई रचना पे आपका स्वागत है !
आभार!
यादों की वीथियाँ व्यथित ही करती है..अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
यादों से गुज़रती हुयी ... लाजवाब रचना है ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ! शमा जलेगी तो रात भी रौशन ज़रूर होगी और खुली आँखों में सुन्दर सजीले स्वप्न भी ज़रूर सजेंगे ! सार्थक प्रयत्न कभी विफल नहीं होते !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंइस गहराते तम से
जवाब देंहटाएंसूरज की किरण झाँकेगी
वाह! सुन्दर रचना...
सादर.
बहुत सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंsundar bhaavo ki rachna.......
जवाब देंहटाएंक्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
जवाब देंहटाएंइस गहराते तम से
सूरज की किरण झाँकेगी
बंजर धरती से जीवन में |
कभी तो रौशन हो रात
शमा के जलने से
यादों से मुक्त हो
खुली आँखों में स्वप्न सजें |
waah बहुत खूब ...
सुंदर अभिव्यक्ती
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना ...
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