10 जनवरी, 2012

गहन विचार

गहन गंभीर जटिल विचार 
बहते   जाते  सरिता जल से 
होते प्रवाह मान  इतने
रुकने का नाम नहीं लेते |
है गहराई कितनी उनमें 
नापना भी चाहते 
पर अधरों के छू किनारे 
पुनःलौट लौट आते |
कभी होते तरंगित भी 
तटबध तक तोड़ देते
मंशा रहती प्रतिशोध की 
तब किसी को नहीं सुहाते |
तभी  कोइ विस्फोट होता 
हादसों का जन्म होता 
गति बाधित तो होती 
पर पैरों की बेड़ी न बनती |
सतत अनवरत उपजते बिचार 
गति पकड़ आगे बढ़ते 
बांह समय की थाम चलते 
प्रवाहमान बने रहते |

आशा




15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और प्रेरणादायक रचना,आप ने अपने नाम के अनुरूप ही रचना लिखी ,बधाई स्वीकारें......

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  2. गहन गंभीर जटिल विचार
    बहते जाते सरिता जल से
    होते प्रवाह मान इतने
    रुकने का नाम नहीं लेते |

    वाह! बहुत सुंदर...

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  3. अच्छी प्रस्तुति .. गहन विचार विस्फोट भी बन जाते हैं कभी कभी ..

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  4. गहन गंभीर जटिल विचार
    बहते जाते सरिता जल से
    होते प्रवाह मान इतने
    रुकने का नाम नहीं लेते |गहन विचारो की सार्थक अभिवयक्ति.......

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  5. बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||

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  6. गहन जटिल विचार ....
    सोच देती रचना ....

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  7. विचारों की सघनता गहन गंभीर नदी की तरह ही शांत होती है किन्तु कभी कभी यह भी विस्फोटक हो सकती है ! बहुत सार्थक सोच लिये एक उम्दा रचना ! अति सुन्दर !

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  8. गहन विचार कभी रुक ही नहीं सकते।
    बहुत अच्छी लगी कविता।


    सादर

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  9. है गहराई कितनी उनमें
    नापना भी चाहते
    पर अधरों के छू किनारे
    पुनःलौट लौट आते

    ye lines kafi acchi lagi
    puri poem shandar hain

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  10. बहुत सुंदर और प्रेरणादायक रचना|

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  11. sahi kaha aapne vicharo ke prawah rokna bahut miushkil hota hai....

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  12. बिल्कुल सही कहा आपने । प्रेरक रचना । आभार ।
    मेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
    मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी

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  13. सहमत हूँ आपकी बातों से प्रेरक रचना आभार ...

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