बहते जाते सरिता जल से
होते प्रवाह मान इतने
रुकने का नाम नहीं लेते |
है गहराई कितनी उनमें
है गहराई कितनी उनमें
नापना भी चाहते
पर अधरों के छू किनारे
पुनःलौट लौट आते |
कभी होते तरंगित भी
तटबध तक तोड़ देते
मंशा रहती प्रतिशोध की
तब किसी को नहीं सुहाते |
तभी कोइ विस्फोट होता
हादसों का जन्म होता
गति बाधित तो होती
पर पैरों की बेड़ी न बनती |
सतत अनवरत उपजते बिचार
गति पकड़ आगे बढ़ते
बांह समय की थाम चलते
प्रवाहमान बने रहते |
आशा
बहुत सुंदर और प्रेरणादायक रचना,आप ने अपने नाम के अनुरूप ही रचना लिखी ,बधाई स्वीकारें......
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंगहन गंभीर जटिल विचार
जवाब देंहटाएंबहते जाते सरिता जल से
होते प्रवाह मान इतने
रुकने का नाम नहीं लेते |
वाह! बहुत सुंदर...
अच्छी प्रस्तुति .. गहन विचार विस्फोट भी बन जाते हैं कभी कभी ..
जवाब देंहटाएंगहन गंभीर जटिल विचार
जवाब देंहटाएंबहते जाते सरिता जल से
होते प्रवाह मान इतने
रुकने का नाम नहीं लेते |गहन विचारो की सार्थक अभिवयक्ति.......
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंगहन जटिल विचार ....
जवाब देंहटाएंसोच देती रचना ....
विचारों की सघनता गहन गंभीर नदी की तरह ही शांत होती है किन्तु कभी कभी यह भी विस्फोटक हो सकती है ! बहुत सार्थक सोच लिये एक उम्दा रचना ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंगहन विचार कभी रुक ही नहीं सकते।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी कविता।
सादर
है गहराई कितनी उनमें
जवाब देंहटाएंनापना भी चाहते
पर अधरों के छू किनारे
पुनःलौट लौट आते
ye lines kafi acchi lagi
puri poem shandar hain
बहुत सुंदर और प्रेरणादायक रचना|
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne vicharo ke prawah rokna bahut miushkil hota hai....
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने । प्रेरक रचना । आभार ।
जवाब देंहटाएंमेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी
सहमत हूँ आपकी बातों से प्रेरक रचना आभार ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है |
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