बढ़ते चरण मंहगाई के 
जीना दुश्वार कर रहे 
आज है यह हाल जब 
कल की खबर किसे रहे 
यादें
सताती है 
कल
के खुशनुमा दिनों की 
मन
पर अंकुश तब भी था 
पर
हर वस्तु लेना संभव था |
बात आज की क्या करें 
ना तो  नियंत्रण मन पर 
ना ही चिंता भविष्य की 
‘बस इस पल में जी लें ‘
है अवधारणा आज की 
 है हाल बुरा मंहगाई का 
अंत नजर ना आता इसका 
सुरसा का मुँह भी
लगता छोटा 
इसका कोई हल ना होता
|
आशा 







