मन क्या
चाहता 
व्यक्त न कर पाता
अपलक निहारता रहता
क्रम सृष्टि का निश्चित
व्यक्त न कर पाता
अपलक निहारता रहता
क्रम सृष्टि का निश्चित
सुबह होते ही जीवन
में रवानी 
धीरे धीरे रफ्तार
बढ़ना 
फिर शिथिलता और रात
को थमना 
निश्चित क्रम का एहसास
तक नहीं किसी को 
ना ही कोई व्यवधान या घमासान
की चाहत जीवन क्रम में
की चाहत जीवन क्रम में
पर एक बिंदु पर आकर 
मन शांत स्थिर होने
को बेकरार 
यही है जीवन का सत्य
जिसे जानना सरल नहीं
वही स्थिति पहुंचाती
उस तक 
होता जाता लीन उसी
में 
तब संसार तुच्छ लगता
मानसिक बल लिए साथ 
शून्य में समाना
चाहता 
परम गति पाना चाहता |
आशा 
