13 अप्रैल, 2018

बदला मिजाज मौसम का




मौसम का बदला मिजाज
अचानक बादल आ गए
थोड़ी सी ठंडक देने को
पर गलत हुआ सोच
गर्मीं की तल्खी और बढ़ गई
धरती की नमीं खोने लगी 
बड़ी बड़ी दरारें पडीं वहां
दोपहर में यदि बाहर निकले
पैरों में छाले पड़ गए
यही हाल रात में होता
नींद नहीं आती आधी रात तक
अब तो बदलाव मौसम का
बदलता है रूप पल पल में
हर बार  विचार करना पड़ता है
क्या करें क्या न करें
देखो ना पानी बरसा नाम  को
फसल हुई प्रभावित क्या करें ?
सोचना पड़ता है |
 अनुसार उसी के  चलना पड़ता
जो हो ईश्वर की मरजी |
आशा

11 अप्रैल, 2018

डर




 मन का भय के लिए इमेज परिणाम
बचपन से ही डर लगता है
आदी नहीं  किसी वर्जना की
ऊंची आवाज से भयभीत हो
 अपने अन्दर सिमट जाती है
उस पर   है प्रभाव है इस कदर
अँधेरे में  सिहर जाती है
रात  में  नहीं जाती बाहर
 डर जाती है अपनी ही छाया से
जानती है वहां कोई नहीं है
अकेली है वह
अकेलेपन  से जूझती रहती  
पर ज़रा सी आहट से
काँप जाती सर से पाँव तक
दूर कैसे करे मन के डर को
सब समझा कर हार गए हैं
 है स्वयं ही डर की सृजनकर्ता
 भय मन से जब दूर होगा
ओढ़ा डर का आवरण
 झाड़ झटक बाहर करेगी
 वह   दृढ निश्चय  करेगी
सभी से सामना करने की
 क्षमता है उसमें तब ही
किसी से नहीं डरेगी |
आशा  

हाईकू


१-मन प्रसन्न 
रखना आवश्यक 
आज कि सोच 

२-सच कहा है 
मिठास जब होती 
कटुता आती 

३-खोखले रिश्ते 
निभाना है दूभर 
इन से बचो 

४-तुम्हारा स्नेह  
है अटूट बंधन 
जीवन भर 

५-सुगंध नहीं 
सूखे पुष्प सारे ही 
उजड़ा बाग 

६-आशा निराशा 
मन के दो पहलू 
बेचैनी बढ़ी


7-मन मयूर
नाचता छम छम
हो के प्रसन्न

८-दूरीबहुत
मन सह न सके
उलझन है

९-तुम क्या जानो
बेटी है अनमोल
भाग्य से मिली



आशा

09 अप्रैल, 2018

सुख दुःख




सुख दुःख आ गले मिले
बड़े प्रेम से आज
पर दौनों में बहस छिड गई
है वर्चस्व किसका 
सुख ने तर्क रखा बड़ी गंभीरता से
यूं तो मैं कम समय रुकता हूँ पर
जब तक रुकता हूँ 
जीवन में रहता है 
वर्चस्व  बहार का 
दुःख ने कुछ सोचा फिर बोला
अवधी  मेरी है अधिक
 यदि मैं न रहता 
 तुम्हारी ओर
ध्यान किसी का न जाता
लोग कैसे जानते तुमको
मान लो मैं हूँ तुम्हारा सहोदर
मुझसे ही है पहचान तुम्हारी
पहले सुख सोच में पड़ गया
फिर मान ली हार अपनी
है कटु सत्य यही कि
यदि दुःखों  के पहाड़ न टूटते
 सुख का अनुभव कैसे होता
सुख  प्यार से गले मिला दुःख से  
दोनों अपनी अपनी राह चल दिए |
आशा

05 अप्रैल, 2018

नारी आज की













आज की नारी के लिए चित्र परिणाम
निर्भय हो विचरण करती
अपनी क्षमता जानती
अनजान नहीं परम्पराओं से
  सीमाएं ना लांघती |

परिवार की है बैसाखी
हर कदम पर साथ देती
है कर्मठ और जुझारू
आत्मविश्वास से भरी रहती |
जी जान लगा देती 
हर कार्य करना चाहती 
हार उसे स्वीकार नहीं 
खुद को कम ना आंकती |
है यही  छुपा राज
  नारी के उत्थान का 
आज के समाज में 
अपने पैर जमाने का
पर अभी भी मार्ग दुर्गम 
पार करना सरल नहीं 
है परीक्षा कठिन फिर भी 
उसे किसी का भय नहीं |
 आँखें नहीं भर आतीं उसकी 
छोटी छोटी बातों पर 
दृढ़ता मन में लिए हुए है 
निर्भयता का है आधार |
दृढ इच्छा शक्ति से भरी 
सजग आज के चलन से 
अब नहीं है अवला
जीती जीवन जीवट से |
माँ बहन पत्नी प्रेमिका 
ही नहीं बहुत कुछ है वह 
जिस क्षेत्र में कदम रखती 
सफलता उसके कदम चूमती |
है आज की नारी 
अवला नहीं है 
सर्वगुणसंपन्न है 
बेचारी नहीं है |
आशा

महिला तो महिला रहेगी



बड़ी बड़ी बातों से
कोई महान नहीं होता
एक दिन की चांदनी से
अन्धकार नहीं मिटता
महिला तो महिला ही रहेगी
सुखी हो या दुखों से भरी
एक दिन में सुर्ख़ियों में आकर
अखवारों में तस्वीर छपा कर
अपनी योग्यता गिनवाकर
अन्तराष्ट्रीय दिवस में छा कर
प्रथम श्रेणी में तो न आ पाएगी
दूसरे दर्जे की है मुसाफिर
प्रथम में कैसे जाएगी
वर्षभर अनादर सहती
बारबार सताई जाती
अपेक्षित सम्मान न पाती
कुंठाओं से ग्रसित वह
कैसे यह दिवस मनाए
अपनी पीड़ा किसे बताए |
आशा

04 अप्रैल, 2018

दोनो का प्रारब्ध एक सा



पिंजरे में band ek pakshi देखना देती लड़की के लिए इमेज परिणाम


घुगरू वाली पायल पहन कर
पूरे आँगन में घूमती
एक रंगबिरंगी चिड़िया उड़ आई
मेरे साथ  चली  दूर तक
मुझसे मित्रता हुई उसकी
कुछ दिन यह क्रम जारी रहा
पर एक दिन उसे
किया गया  बंद
 सुन्दर से पिंजरे में
बहुत पंख  फड़फड़ाए उसने
 पर स्वतंत्र न हो पाई
 थक कर निढाल हो गई
जैसे  जैसे उम्र बढ़ी मेरी
 बंधन भी बढ़ने लगे
यह करो यह ना करो
की दूकान हो गई
अधिक रोकाटोकी ने
मन को विद्रोही किया
कोई बंधन स्वीकार न था   
स्वतंत्र विचरण ,आचरण
ऊंचाई तक जाने के स्वप्न
साकार करने के जब दिन आए
सजी सजीसजाई सुन्दर सी
डोली में की गई बिदाई
ससुराल में रहने को 
उस चिड़िया सी हो कर रह गई
स्वप्न सिमटे मन के कौने में
ऊंची उड़ान कल्पना में |
आशा