कब तक बैठी राह निहारूं 
तुम मुझे भूल गए हो  
तुम जिस मार्ग से गए थे 
उस पर से ही चल कर 
अपना मार्ग प्रशस्त करूं |
मैंने कितनी बार सोचा 
क्यूँ न मैं ही कदम बढाऊँ 
क्यूँ अपने वजूद को भूलूँ 
मार्ग कितना भी कठिन क्यूँ न हो 
उसी मार्ग से तुम तक पहुंचूं |
 अनेक वर्जनाएं मेरी राह रोके खड़ी है 
मेरा साहस टूट गया है 
लोग क्या कहेंगे ?
हर बार यही बात मेरे कदम रोकती है |
अब मुझमें इतनी शक्ति नहीं है 
मैं खुद से कोई निर्णय ले पाऊँ  
या समाज के आगे झुक जाऊं |
कल्पना में जीने से कोई लाभ नहीं है 
यदि अपने निर्णय खुद न ले पाई 
यह जीवन अकारथ हो जाएगा |
तुम आओ या मुझे बुलाओ 
अधर में न लटकाओ 
या मुझे इतनी शक्ति से  भर दो 
मुझे अपने पैरों पर खड़ी कर दो 
मैं बिना रुके तुम तक पहुँच पाऊँ |
आशा  
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