21 जनवरी, 2023

क्यों हो उसका उपहास


                                                        तुम याद उसे कब तक करोगे 

क्यूँ   उपहास कराओगे जग में 

कितनी बार समझाया तुम्हें 

यूँही नहीं सताओगे उसको 

हंसना हंसाना अलग बात है 

यह तो वह समझती है 

क्या सही और क्या गलत है 

वह  जानती है इनकार नहीं करती |

 उसे  नहीं है   आवश्यकता

किसी की समझाइश की

अब वह कोई नादाँन नहीं है

 भला बुरा खुद के लिए समझती है |

जितनी बार मिली तुमसे 

उसने तुम्हें अपना माना 

मध्यस्त कोई नहीं चाहिए 

उसके और तुम्हारे बीच |

उसने अनुराग किया था तुमसे 

कोई और न था बीच में 

यही दुःख उसके मन को साल रहा 

वह पहचान न पाई तुमको ||

मुझे बहुत तरस आया उस पर 

तभी मैंने तुमसे अनुरोध किया 

वह कोई खिलोना नहीं जिससे 

खेला और फैक दिया ज़रा समझो | 

मन को बड़ी ठेस लगती है 

इस प्रकार के व्यबहार से 

तुम्ही उसे समझा सकते हो 

मुझे यही कहना है तुमसे |

आशा सक्सेना 



20 जनवरी, 2023

कविता एक गीत

 


                                       कविता का गीत बड़ा मदिर

सब से मीठा सब से मंहगा

गाने के शब्द भी चुन लिए

कोमल भावों को सजाया वहां |

 मधुर धुन उसकी गुनगुनाती

एक आकर्षण में बहती जाती

कलकल कर बहती नदिया सी

लहरों पर स्वरों संगम होता |

यही विशेषता है उन दौनों में

एक ही ताल पर शब्दों का थिरकना

मनभावन रूप में सजाए जाना एक नया

 रूप दिखाई देता गीत जीवंत हो जाता |

आशा सक्सेना    

19 जनवरी, 2023

कायनात वैविध्य लिए


                                                           है वैविध्य लिए कायनात 

पग पग में कुछ नया लिए 

ईश्वर ने रचा यह  संसार 

अद्भुद है किसी से समानता नहीं |

पर एक विशेषता सब में है 

आपस में है  ताल मेल इतना 

सभी यहाँ मिलजुल कर रहते 

बैमिनस्य से दूर रह कर |

|जब भी तकरार किसी में होती

कोई  मध्यस्त रहता सुलह के लिए 

बीच बचाव के किये  यही क्या कम है 

जब भी एक हो जाते चहकते रहते उम्र भर |

सब एक दूसते पर होते आश्रित

 यह दूसरी विशेषता है  सब में 

यह संसार यूँ ही चलता रहता 

ईश्वर के आश्रय में सक्रीय्रा रहता |

कोई कायनात ऎसी न देखी होगी जहां 

आभा  धरती पर  बिखरी होती चारों ओर

चन्दा और तारों की चमकीली ओढनी

 रात में लिपटी होती चारों ओर से ||

और सुबह आदित्य ने ऊर्जा से गोद भरी 

 धरा   हरी भरी दीखती  सजीव हर कौने से 

सुन्दरता उसके जैसी  कहीं नहीं होती 

यही है करिश्मा इस कायनात का |


आशा सक्सेना 


18 जनवरी, 2023

सच्चा मोती


                                                  सागर में सीपी ,सीपी में मोती

जिस मोती  में आव होती 

यही तो उसकी है  पहचान 

जो सब में नहीं रहती |

कुछ ही ऐसे मोती  होते 

जिन में आव स्थाई रहती

यही स्थाईत्व बहुत कम

जिन मोतियों में रहता वे ही सच्चे होते |

उन जैसी कुछ महिलाए ऎसी होतीं

 जिनके मुख मंडल पर गजब की आव होती 

 वे अलग ही नजर आतीं होतीं

 सब से अलग होतीं दूर से ही पहचानी जातीं

यही आव  उनकी पहचान होती

 मन से सच्ची विचारवान होतीं 

होतीं आचरण में शुद्ध सात्विक 

यही उनकी विशेषता होती | 

 

आशा सक्सेना 

15 जनवरी, 2023

हाईकू



१-कविता कैसी 

 मन मोहती रही

    वे सराहते 

२-श्याम विहारी

 मोहन बंसी वाले

हो श्याम तुम्ही

३-मुरली धुन

पर राधा नाचती

श्याम के संग

४-किससे कहूं

मुझे प्यारे लगते

मन मोहन

५-पवन पुत्र

हनुमान जी यहीं

वास  करते

६-पुन्य प्रताप

पाया मैंने राम  से

हरी राम से

७-किसने कहा  

तुम कण कण में

नहीं रहते


आशा सक्सेना 

13 जनवरी, 2023

काम जब ठीक से न बटा हो

 




कितनी सीमित सारी जानकारी मिली  

मन ने भी बार बार टोका

 किसके लिए  किसने काम सोपा

जानने  को  आवश्यक न समझा |

सब कार्यों की  न जान कारी मिली

 उसे दूर रखा गया सब से

कारण तक न बताया गया

या उसे धर का सदस्य ना समझा |

यह समस्या तभी उत्पन्न होती

जब तीन पांच  का राज्य होता

 सब देते दोष एक दूसरे को

 शिकायत करते आपस में युद्ध करते |

मन का विक्षोभ इतना बढ़ता कि

किसी कार्य में चित्त न लगता

इसी लिए कहना पड़ता अपना अपना

काम  करो और घर जाओ |

घर का माहोल न बिगाड़ो

आपस में झगड़ने से क्या लाभ होगा

कभी अवसर भी देखा करो

तुम बच्चे जैसा न लड़ा करो |

आशा सक्सेना 

 

 

 

11 जनवरी, 2023

आज मौसम कितना सुहाना

 

                                                आज   मौसम कितना सुहाना है 

सर्दी सुबह  है गर्मी दोपहर में 

शाम को फिर वही 

मौसम आ जाना है |

बाहर जाने का 

सैर सपाटे का मन है 

काश हम भी

 सैर सपाटा कर पाते |

मन में तो अरमान न  बचे रहते  

खूब आनन्द मनाते 

  यह न रहता कि

 हमने सैर नहीं  की |

अपने अरमान सजाते गाते गुनगुनाते

दूर जंगल में निकल जाते 

मोर संग नाचते 

चिड़ियों संग ऊपर आसमान में उड़ते   |

 छत पर जा रंगीन पतंग 

संग पैच लड़ाते 

काटा है  ,काटा है कह

 चिल्लाते  खुशी मनाते   

 धूप निकल आती कठिन होता

 पतंग बाजी करना |

माँ के पास जाकर  बहुत

 प्यार से गुड़ तिल खाते 

अपने मित्रों के घर भी जाते

 सभी बड़ों के पैर छूते |

जब कोई आशीष देता

 मन में गर्व का  अनुभव करते 

मकर संक्रांति का दिन कैसे कटता

 यह भी भूल जाते |
दिन  में पतंग बाजी कर

 इतने थक जाते

कहाँ सोएं यह तक याद नहीं रहता 

 खाना खाना ही भूल जाते |

आशा सक्सेना