जब से जन्में साथ रहे
एक ही कक्ष में
खाया बाँट कर
कभी न अकेले बचपन में
खेले सड़क पर एक साथ
की शरारतें धर बाहर
गहरे सम्बन्ध रहे सदा
दौनों के परिवारों में
कहाँ तो एक दूसरे को
भाई कहते नहीं थकते थे
दरार कब कहाँ कैसे पड़ी
दोनो जान न पाए
खाई गहरी होती गई
कम नहीं हो पाई
अब तो एक दूसरे को
निगाह भर नहीं देखते
सामने पड़ते ही
मुहं फेर कर चल देते हैं
कहाँ गया सद्भभाव और
आपस में भाईचारा
अजब सा सन्नाटा
पसरा है गली
में
कोई त्यौहार मने कैसे
रक्षाबंधन दिवाली ईद और होली
मिठाई में मिठास पहले सी नहीं है
मन में उत्साह नहीं है
रंग सभी बेरंग हो गए
जब मन ना मिले
न जाने किस की नजर लगी है
आपस के
प्रेम में
तिरोहित हुआ है
माँ बहन मौसी
भाभी का स्नेह
जबतक भाईचारा फिर से न होगा
जीवन में कोई रंग न होगा
अनेकता में एकता का
मूल मंत्र सार्थक
न होगा |
आशा