04 सितंबर, 2023

मेरा वजूद

 

सुहानी रात में अकेले सड़क पर घूमना

मुझे कम ही पसंद आता

पर किसी का साथ पाकर 

मन में उत्साह भर आगे बढ़ना चाहता |

हर बार की तरह मैंने कुछ आगे ना देखा

न ही पीछे की ओर मुड़ कर देखा 

अपना अस्तित्व ही खो दिया |

अब मन पछता रहा है यह मैंने क्या किया

अब तक स्वप्नों में खोई रही

 अपने आप को स्वप्नों में खो कर

नही कुछ पाया मैंने |

अपने मन को और दुःख पहुँँचाया है

अपने वजूद को बहुत सम्हाल कर रखा था

अब हुआ वह दूर मुझ से

अब दुखी हुई बेगानी हुई अपने वजूद को खो कर

मुझको कोई जानता नहीं पहचानता नहीं

आज के समाज में |

यही दुःख मुझे अब सालने लगा है

अब मैं अंतरमुखी होती जा रही हूँ

ना किसी से मिलने जुलने का मन ही होता

एकांतवास की इच्छा बलवती हो उठी है |

आशा सक्सेना 

03 सितंबर, 2023

स्वप्न भरे मस्तिष्क में

 

स्वप्न भरे मस्तिष्क में होता जमाव  ऐस

व्यस्त हो जाती उनकाअर्थ निकालने में

किसी हद तक पहुँच भी जाती

 अर्थों का सार निकालने में |

जो मुझे पसंद आते उनको समेट लेती

अपने मन के किसी कौने में

किसी को भी जानने  नहीं देती

मेरे मस्तिष्क में क्या चल रहा है

इससे मुझे लाभ होगा या हानि  |

या कुछ भी प्राप्त नहीं होगा

बिना किसी की सही  सलाह के

या अपने तक ही सीमित होती

सीधी राह चल कर बहुत कुछ हाँसिल करती

अपनी बुद्धि को स्वच्छ और परिमार्जित रखती |

यही चाह थी मेरी जिससे  मैंने बहुत  कुछ सीखा

अपने को संतुलित किये रहती कभी धेर्य नहीं खोती

यही सीखा है मैंने किसी कार्य की जल्दी नहीं की

मुझे  आत्मनिर्भरता से बहुत बल मिलता |

किसी की गरज करनी नहीं पड़ती

अपना सोचा किया किसी पर नहीं थोपा

नाही किसी पर आश्रित रही स्वयं पर ही हुई निर्भर

यही हल निकाला मैंने स्वप्नों के संग्रह से |

30 अगस्त, 2023

राखी का बंधन जन्म जन्मान्तर का

 क्या किया जाए  यदि दिल में

 प्यार की कोई कद्र ना हो 

जिससे भी प्यार किया 

उसकेे मन में हमारी 

 कोई कीमत ना हो |

सभी धान बाईस पसेरी हो 

कोई अंतर नहीं हो |

तब क्या लाभ ऐसे सौदे में 

जिस दृष्टि से भी देखो 

मसला हल नहीं हो पाता 

किसी से कोई उम्मीद नहीं 

पर प्यार का कोई 

समय निर्धारित नहीं होता 

बंधन राखी का होता ऐसा 

किसी से पाने के लिए 

इसे  माँँगना नहीं पड़ता |

जिस रूप का हो वैसा ही स्वीकार कर

 उसे बड़ा महत्व दिया जाए 

यही है आवश्यक हमारे लिए |

ईश्वर ने जन्म से ही 

भाई बहिन का साथ बनाया है 

जन्म जन्मान्तर तक इसे निभाना है 

रक्षाबंधन का त्योहार है 

बहुत प्यार से इसे मनाने  में 

जो खुशी मिलती है 

किसी और त्योहार में नहीं |

आशा सक्सेना 




29 अगस्त, 2023

प्यार स्वतः ही उपजता


                                                        किसी के प्यार की तुमने 

कोई कीमत नहीं समझी 

यह होता अनमोल 

किसी से तुलना नहीं उसकी |

जब से सोचा प्यार किसे कहेंं 

जो स्वतः ही मन में जन्म ले 

जिससे दिल में दर्द हो 

उसे ही कहा जाता प्यार |

|किसी से माँँगे नहीं मिलता 

यह अपने अंतर में 

स्वतः ही जन्म लेता 

सब को सही राह दिखलाता |

उसकी कद्र ही समझता 

जो भी मिले सम्मान से स्वीकारता  

फिर दिल से  धन्यवाद देता 

उसका आनंद ही कुछ और होता |

आशा सक्सेना 





















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मेरे मन की

 

मेरे मन की

अब तैयारी है किताब ‘साँँझ की बेला' अठारहवेंं कविता संग्रह' के प्रकाशन की | जल्दी ही वह आपके सम्मुख होगा | आप ही निर्धारित करेंगे पुस्तक कैसी लगी | मेरे निर्णायक आप मेरे पाठक ही हैं | मुझे क्या लिखना है क्या नहीं आप पर निर्भर है |

लेखिका

आशा सक्सेना 

28 अगस्त, 2023

किसी की दखलंदाजी

 


किसी का दखल नहीं पसंद उसे

वह  स्वतंत्र रूप से रहने वाली

जिसने भी दिया दखल बीच में

है वह पलटवार करने वाली |

कभी नहीं सोचा उसने भविष्य के बारे में

जिसने भी सलाह दी उसे

मूर्ख ही समझा उसको उसने

मन संताप से भरा उसका |

वह दखलंदाजी सह ना पाई

उसने उससे किनारा किया

मन से दूर रखा उसको

कभी फिर पास आने ना दिया |

कोई कुछ कहे सुने या 

बीते कल को दोहराए 

यह आजादी ना दी उसने कभी  

तभी समाज में स्थान बना पाई

अपनी स्वतंत्रता को तर्क कुतर्क से रखा दूर |

मन का संतुलन बनाए रखा

किसी को नहीं दिखाया अपनी परेशानी को

कोई अंदाज़ भी ना कर पाया

उसकी समस्या क्या है |

उसने एक ही सिद्धांत अपनाया

अपनी समस्या का उसे ही हल निकालना है 

कोई अन्य की सहायता नहीं स्वीकार उसे

कोई सहायता तो करता नहीं

पर व्यवधान डालने में अधिक आनंद लेता |



आशा सक्सेना  

 

 

   

27 अगस्त, 2023

नवल रूप तेरा

 नवल रूप है प्यारा प्यारा 

जब देखो अनोखा दिखता 

आकर्षण है ग़ज़ब का 

मन भूल नहीं पाता |

ये  आदतें ये अदाएं 

किससे सीखीं तुमने 

या प्राकृतिक रूप पाया 

ईश्वर से मिली तुम्हें |

नवल अदाएं पाईंं तुमने 

बहुत सिंगार ना किया 

मुँँह पर लाली, माथे पर बिंदी, 

नयनों में कजरा लगाया तुमने |

यह सुन्दर रूप सँँवारा कितने जतन से

 सजाई है माँँग किस के लिए 

यही सफलता पाई है 

नवल रूप की लम्बी आयु के लिए  |

जो देखता उसके मन में बस जाती 

इन  आकर्षक नयनों की  यादें 

जिनके पास नहीं होती 

यह अमूल्य निधि  प्रभुु की देन  

वे ईर्ष्या भी करते बात बात पर |

पर नवल रूप पा नही सकते 

मन में संताप पालते |


आशा सक्सेना