13 अक्तूबर, 2023

तुम जानो या ना समझो

 

यूँ तो आज  किसी का कोई नहीं है

 तुम समझो या ना समझो

किसी को अपने व्यवहार से

अपनाया भी जा सकता है |

तुम जानों या ना जानो

अपने झुकने से विनम्ब्र होने से

किसी को ख़ुशी मिले यदि

इससे  बड़ी बात क्या होगी |

हमने तो एक ही बात

 सीखी है अपने बड़ों से

गैरों को अपनाने से   

 गले लगाने से

बड़ी संतुष्टि मिलती है |

अपना होने की कला सब  नहीं जानते

 जो ख़ुशी मिलती है यदि बांटी जाए

और  किसी को संतुष्टि मिले

 तब विनम्रता से हानि नहीं होती |

दो बोल मीठे यदि बोले जाएं

 मन में ख़ुशी छा जाती है

वही अपना हो जाता है

 अपने करीब आ जाता है|

बस हमें और क्या चाहिए

 अपने सब नजदीक चाहिए

वही है अपना जो हमारा

 सुख दुःख समझे |

हमारा  होने का एहसास कराए

दिल से हमारा हो जाए

सच्चा मित्र रहे कभी ना  बदले  

कठिन समय होने पर  काम आए |

आशा  सक्सेबा 

11 अक्तूबर, 2023

रूप सुन्दरी

 काले कजरारे आकर्षक नैनों वाली 

बोलती निगाहें तेरी चिलमन से झाँक कर 

इसी  एक अदा पर रीझे हम 

किसी से बचा कर नयनों से बातें करते हम |

कोई भांप ना सका  इन  बातों को 

हम दौनों के सिवाय 

तुमने बड़ी अकाल लगाई  इस वार्तालाप में 

हलके से झाँक कर देखा इशारों से समझाया 

मिलने का ठिकाना बताया 

हुई सफल अपनी योजना में 

किसी का ध्यान ना गया

 काले कुंतल अपने को रोक ना  सके झांके बिना 

हुई सफल हम दौनों की योजना 

|तुम्हारा रूप मेरा आकर्षण जग जाहिर ना हो पाया |


आशा सक्सेना 

10 अक्तूबर, 2023

फिर से शाम उतर आई

 

फिर से शाम उतरी छत पर

फैली विदा होती  सुनहरी धूप

पर ऊपर जाने का मन ना  हुआ

ना जाने क्यों मन में कोई खुशी नहीं

 उदासी छाई है जीवन की उतरती श्याम में |

लगता है सभी कार्य पूर्ण हुए हैं

फिर धरती पर व्यर्थ बोझ क्यूँ रहे

किसी और को भी अवसर मिले मेरे सिवाय

उससे भी अपने कर्ज पूरे करवालूँ

कहीं समय फिर  मिले ना मिले

 सर पर बोझ रख कहाँ जाऊंगी

चार दिन की खुशी बार बार नहीं आती

ऐसा जीने के लिए कुछ समय 

खुशियाँ के लिए भी निकालना पड़ता है

यदि मिल जाए चार चाँद लग जाते हैं सारे जीवन में |


आशा सक्सेना 

09 अक्तूबर, 2023

मैंने जब सोचा

 

  मैंने जब सोचा 

सही राह पर  चलने को

कई व्यवधान आए मार्ग में

किसी ने सही राह ना बतलाई 

मन को ठेस लगी  दिल आहत हुआ 

अब सोचा किसी का संबल क्यूँ लूं 

अपने पर पूरा भरोसा रख कर 

हिम्मत  से कदम आगे बढाए 

माना पहले असफलता हाथ आई 

फिर से प्रयत्न किया 

सफलता झांकने लगी ऊपर से 

जब पूरी सफलता पाई 

मन बल्लियों ऊपर उछला 

दिल जोरों से धडका

यही चाह थी मन में कैसे हार मानती |

आशा सक्सेना 

 

हमने जब सोचा

 

 

  हम ने जब भी सोचा

 सही राह पर  चलने के लिए 

कई व्यवधान मार्ग मेंआए 

किसी ने सही राह ना बतलाई |

मन को बहुत  चोट पहुंची |

फिर सोचा  मेरे ही साथ 

ऐसा हादसा क्यों 

मन से समझोता किया 

सोचा बहुत मनन किया |

किसी बड़े आदमीं ने सलाह देनी चाही 

पर अहम् ने ना स्वीकारा इसे 

यही मैंने मात खाई 

किसी की बात ना मान कर 

हर समय ठोकर ही खाई 

जितनी बार विचार किया

मन में द्रढ़ता जाग्रत हुई 

08 अक्तूबर, 2023

खोलूँ पाठ शाला अच्छे शब्दों की

अपशब्दों की पाठ शाला खुली है

 राजनीति के क्षेत्र में 

चुनचुन करअप शब्दों का उपयोग किया जाता 

सामान्य होमेल जोल की भाषा  में |

यही दिल को दुखी करता क्या यह शोभा देता है 

पढे लिखे लोगों के भाषा उपयोग में 

कभी सोचना  क्या यही सिखाया जाता है 

झड़ी अपशब्दों की लगे जब दो लोग बात करें 

मैंने तो सोच लिया है एक पाठशाला खोलूँ 

जिसमें पाठ पढाऊँ सभी तरीके

 जो आते हों सभ्यता के दायरे  में 

कुछ तो सुधार हो  बोल चाल की भाषा में

 |लोग सुने पर हँसे नहीं दो बोल ने वालों पर 

यही चाहत है मेरी कोई असभ्य ना खे |


आशा सक्सेना 

07 अक्तूबर, 2023

अन्तराष्ट्रीय बालिका दिवस


है आज बालिका दिवस

बड़ी खुशी होती यदि

केवल  कागज़ पर न मनाते इसे

जो बड़ी बड़ी बातें करते मंच पर

उनका अमल जीवन में न  करते

 सही माने में उसे  मनाया जाता |

बालिकाओं को केवल दूसरे दर्जे का नागरिक न कहा जाता  

उन्हें अपने अधिकारों से वंचित न किया जाता

आज के युग में बड़ी बड़ी बातों को

बहुत विस्तार से प्रस्तुत किया जाता

जब सच में देखा जाता

मन को कष्ट होता यही सब देख

कथनी और करनी में भेद भाव क्यों ?

हमारा प्रारम्भ से ही अनुभब रहा

कितना भेद भाव रहता है

लड़कों और बालिकाओं के लालन पालन में

 बहुत दुभांत होती है दौनों में  |

हर बार वर्जनाएं सहनी पड़ती है बालिकाओं को

लड़कों को किसी बात पर  रोका टोका नहीं जाता

इसी व्यबहार से  मन को बहुत कष्ट होता है

यदि  सामान व्यबहार किया जाता दौनों में

 ऐसे दिवस मनाने न पड़ते |

लोग अपने बच्चों में भेद न करते

सबसे सामान व्यवहार करते

कथनी और करनी में भेद न होता

क्या आवश्यकता रह जाती बालिकाओं के संरक्षण की

वे भी सामान रूप से जीतीं खुल कर |