05 सितंबर, 2010

है जिंदगी क्या

अंधेरी रात में ,
जब ना हो कोई साथ में ,
कटती है रात तारे गिन गिन ,
तारे का टूटना और विलुप्त हो जाना ,
किसी अपने की याद दिलाता ,
कामना पूर्ती की आस जगाता ,
आशा निराशा में डूबती उतराती ,
एकाकी जीवन नैया ,
उलझनों से बाहर निकल नहीं पाती ,
गहरे भंवर में फंसती जाती ,
लुकाछिपी करते जुगनू ,
कभी चमकते कभी छिप जाते ,
चमक दमक जिंदगी की,
नजदीक आ दिखला जाते ,
है जिंदगी क्या समझा जाते ,
असली रूप दिखा जाते ,
एक तो अंधेरी रात ,
और दूर से आती आवाज ,
डरावनी सी लगती है ,
बहुत अनजानी लगती है ,
है जिंदगी एक भूल भुलैया ,
सभी इस में खो जाते हैं ,
राह कभी तो दिखती है ,
फिर जाने कंहाँ खो जाती है ,
जब राह नहीं खोज पाते ,
अधिक भटकते जाते हैं ,
और निराश हो जाते हैं ,
यह कैसी संरचना सृष्टि की ,
कोई नहीं समझ पाया ,
ना ही कभी समझ पाएगा ,
मैं हूं एक भटका राही ,
खोजते खोजते राह ,
किसी दिन विलुप्त हो जाना है ,
भूल भुलैया मैं फस कर ,
वहीं कहीं रुक जाना है ,
पर मेरा प्रयत्न विफल ना हो ,
कोई निशान छोड़ जाना है ,
कुछ तो करके जाना है |
आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा ....

    यह कैसी संरचना सृष्टि की ,
    कोई नहीं समझ पाया ,

    बढ़िया कविता

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  2. बहुत सार्थक और प्रेरणाप्रद रचना !
    "पर मेरा प्रयत्न विफल ना हो ,
    कोई निशान छोड़ जाना है ,
    कुछ तो करके जाना है |"
    हम जो कुछ करके जायेंगे वही आने वाली पीढ़ी के लिए हमारी विरासत होगी ! इसलिए जो करना है बहुत सोच समझ कर करना है ! सुन्दर रचना के लिए आभार !

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  3. जी हाँ -सच लिखा आपने-
    मन में एक सोच निरंतर चलती है -
    कुछ तो कर के जाना है -
    शुभकामनाएं .

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  4. इसी भूल भुलैयाँ में ज़िंदगी बीतती चली जाती है ..प्रेरणाप्रद रचना

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  5. aashaa aanti sadr vnde zindgi kya he is pr aapka flsfaa bhut khub he isse zindgi ki kaafi kuch hqiqt sikhne ko mili he achchi prstuti ke liyen haardik bdaayi. akhtar khan akela kota rajsthan

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  6. यह कैसी संरचना सृष्टि की ,
    कोई नहीं समझ पाया ,
    ना ही कभी समझ पाएगा ,
    आशा जी बिलकुल सही लिखा है आपने।ज़िन्दगी मे दुख अधिक हैं खुशियां कम मगर फिर भी ज़िन्दगी चलती है एक आशा पर । बस यही कुछ कर जाने का अगर जज़्वा हो तो राह कुछ आसान हो जाती है। बहुत अच्छी लगी रचना बधाई।

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्चक्ति!
    --
    भारत के पूर्व राष्ट्रपति
    डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिन
    शिक्षकदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  8. वाह ! कितने अच्छे से पिरोया गया है इस कविता में विचारों को !

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  9. आदरणीया आशा अम्मा

    मैं हूं एक भटका राही ,
    खोजते खोजते राह ,
    किसी दिन विलुप्त हो जाना है ,
    भूल भुलैया में फस कर ,
    वहीं कहीं रुक जाना है ,
    पर मेरा प्रयत्न विफल ना हो ,
    कोई निशान छोड़ जाना है ,
    कुछ तो करके जाना है |


    कोई निशान छोड़ कर जाना और कुछ तो करके जाना है …
    ऐसे दृढ़ इरादों के साथ ही जीवन में विपरीत परिस्थितियों को जीता जा सकता है ।
    बहुत अच्छी कविता के लिए बधाई !

    शुभकामनाओं सहित …

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. आप सब का मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और प्रोत्साहित करने के लिए
    मैं बहुत आभारी हूं |
    आशा

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  11. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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