भावनाओं के बहाव में 
की पैठ गहरे में 
अमूल्य रत्न संचित किये 
समेटे अपने आँचल में |
थे अथाह नहीं चाहते 
समाना फैले आँचल में 
उथल पुथल हुई 
बाहर आने की होड़ में |
बेजोड़ शब्द हाथ बढाते 
उन्हें  सहारा देते 
वे प्रगट  होते 
नए से  आवरण में |
मन में उठते शब्द जाल  में 
 उलझते ऐसे 
मन में मलाल न रहता 
कि न्याय उनसे न हुआ |
पर कुछ रह ही जाते 
जाने अनजाने में 
चूक हो ही जाती 
न्याय न हो पाता  |
है विषद संग्रह भावों का
हुई चूक का एहसास तक न होता 
पर जब भी  होता 
मन विचलित हो जाता |
इतनी सतर्कता बरती 
फिर ऐसी भूल क्यूं ?
भाव कहीं गुम हो जाते
मन के किसी कौने में 
दुबक कर सो जाते |
आशा  
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