उन्नति को ग्रहण लगा
तम और गहराया 
जिससे उभर न पाया 
रात दिन भयभीत रहता 
कौन बैरी हो गया   
किसी का सुख देखा न गया 
काँटों से स्वागत किया 
प्यार तो बरसाया नहीं 
कर दी वृष्टि ओलों की
तोड़ दी कमर 
 छोड़ी ना कोई कसर 
घोटालों की पोल खोली 
यहाँ तक भी ठीक था 
पर क्या यह गलत न था  
गेहूं के साथ घुन भी
पिस रहे थे
परीक्षाएं निरस्त हो गईं
सारी महनत व्यर्थ गई
उन्नति मार्ग बाधित हुआ
बड़ी कठिनाई से फार्म भरा था
वही उधारी शेष है
अब कैसे फार्म भरा जाए
सोचने के सिवाय
और ना कुछ शेष है
स्वप्नों का जाल टूट गया
अब भ्रम में जी रहा है
शायद कोई चमत्कार हो
इस ग्रहण से छुटकारा हो |
आशा
पिस रहे थे
परीक्षाएं निरस्त हो गईं
सारी महनत व्यर्थ गई
उन्नति मार्ग बाधित हुआ
बड़ी कठिनाई से फार्म भरा था
वही उधारी शेष है
अब कैसे फार्म भरा जाए
सोचने के सिवाय
और ना कुछ शेष है
स्वप्नों का जाल टूट गया
अब भ्रम में जी रहा है
शायद कोई चमत्कार हो
इस ग्रहण से छुटकारा हो |
आशा
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