कब तक सोचें कितना सोचें
कोई तो सीमा होगी इसकी
पर मस्तिष्क हो रिक्त जब
जीवन अधूरा लगता है |
दिन रात सोचने की बीमारी
अब आदत सी हो गई है
किसी ने सत्य कहा है
खाली दिमाग शैतान का घर |
दिल से सोचें अथवा दिमाग से
यादों का सलीब लटकता रहता
बोझ बन कर हर हाल में
मन विचलित करता है |
कभी सोचकर देखा है क्या ?
यदि हो खाली दिमाग
होगा क्या हश्र हमारा खुद का |
अतीत पीछे भाग रहा है
कोई बच न पाया इससे
सुख दुःख की सीमा नहीं है
हर समय अशांति रहती है |
कोई तो हल होगा इसका
जब शान्ति जीवन का हिस्सा होगी
ऐसा होगा जाने कब
जीवन शैली संतुलित होगी |
आशा
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५ -१०-२०२१) को
'जन नायक श्री राम'(चर्चा अंक-४२१८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुप्रभात
हटाएंआभार अनीता जी मेरी रचना की सूचना के लिए |
दिल से सोचें अथवा दिमाग से
जवाब देंहटाएंयादों का सलीब लटकता रहता
बोझ बन कर हर हाल में
मन विचलित करता है |
आपकी हर एक रचना बहुत ही अच्छी और सुंदर होती है
सुप्रभात
हटाएंधन्यवाद मनीषा जी टिप्पणी के लिए |दशहरे की शुभ कामनाएं |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंखाली दिमाग शैतान का घर
जवाब देंहटाएंक्या सोचें कितना सोचें...
बहुत सुन्दर।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |
कभी कभी दिमाग को भी विश्राम देना चाहिए ! थका मस्तिष्क कभी सकारात्मक बात नहीं सोच सकता !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |