08 मार्च, 2022

नारी वर्तमान में (अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर )

 


 सुनहरी धुप प्रातः की 

जब भी खिड़की से झांकती 

नैनों से दिल में उतरती

दिल को बेचैन करती |

जब कभी विगत में झांकती

उसे याद करती मन से

 वही गीत गुनगुनाती फिर से

जो कभी उसने  गाया था मंच पर |

जितनी तालिया मिलीं थी

उनकी मिठास आज तक सुनाई देती

मधुर धुन कानों में गूंजती

मंजिल को सक्षम हो छूने के लिए |

 स्वप्न साकार हुआ था उसदिन

पहले अक्सर  सोचा करती थी

कब मुझको भी सफलता मिलेगी  

तालियों का उपहार मिलेगा |

मन  हुआ था उत्साहित 

समूचा कम्पित हुआ था तन मन  

 मंच पर पैर रखते ही

 तालियों की गूँज सुन कर  |

आज के युग की नारी हूँ

कदम पीछे कैसे  हटाती  

जो सुख मिला सफलता से

मस्तक उन्नत हुआ मेरा

तालियों के स्वागत से |

यही चाहत  भी  थी मेरी

अग्र पंक्ती में सदा रहने की

अपनी योग्यता साबित करने की

सोच था किसीसे कम नहीं मैं |

आशा 

 

 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-03-2022) को चर्चा मंच       "नारी  का  सम्मान"   (चर्चा अंक-4364)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  2. सुप्रभात
    आभार सर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आज के अंक में |

    जवाब देंहटाएं

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