उदास चेहरा मुरझाया आनन
यह हाल है तुम्हारा
मुझसे क्यओं छि\पाया
मुझे बताया नहीं |
तुमने मुझे अपना नहीं समझा
मुझे पराया समझअपने से दूर रखा
यही मुझे दुखद लगा पर क्या करती
यहीं मात खाई मैंने, दौनों में अंतर ना किया |
हमने कभी सीखा नहीं
गैर को भी अपना समझा
कदम रखा उस धरा पर
जिसने उसे अपनाया |
मुझमें तुझमें है भेद क्या
यूँ तो किसी ने ना जताया
पर मेरे पास आते ही
अंतर मन को ठेस लगी उसके |
मैंने इशारे में समझ लिया
खुद को उससे भी दूर किया
यह मेरा नसीब है या आशीष प्रभु का
किसी को क्या दोष दूं मेरे |प्रारब्ध में यही है |
सब से दूर रह कर चलना है
अपने भाग्य को समझना है
मेरे मन में कपट नहीं है
इसे भी नहीं भूलना है |
आशा सक्सेना
सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नितीश जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रूपा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंअपनों के पराये का दर्काद बयां करती सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गिरजा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अभिलाषा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएं