17 दिसंबर, 2023

राह भटका एक तोता




 राह  भटका एक पक्षी 

आ कर बैठा बाहर दीवार पर 

जैसे ही दरवाजा खुला खिड़की का 

वह आ बैठा उसे के द्वार पर |

जब किसी ने ध्याँन न  दिया 

आवाज लगाई मिठ्ठू ने मधुर 

बोला मिठ्ठू मिठठू मिठ्ठू

सब को आकृष्ट किया उसने |

फिर उड़  कर  आ बैठा 

मंदिर के  दरवाजे पर 

सब ने सोचा भूखा  है 

लाकर दिया उसे अमरुद |

बहुत प्रेम से खाया उसने 

 जब संतुष्ट हुआ उड़ चला

 दरवाजे पर बैठ कर

 मीठी तान सुनाई सब को |

रात हुई वह सो रहा वहीं पर 

प्रात की मंद हवा ने उसे जगाया 

उसने अपने मधुर कंठ से 

हमें जगाया गाकर 

सुबह कि चाय पर 

हमने बिस्कुट लिया हाथ में 

उसकी ओर खाने को बढाया 

 बड़े प्यार से चोंच से पकड़ा

 और स्वाद ले  कर खाया उसने||

 फिर से उसे रौशनी  दिखी 

शायद किसी ने 

 प्यार से आवाज दी उसे 

वह  पंख फैला कर  उड़ चला

 अनजानी  राह पर 

हम देखते ही  रह गए

वह  फिर लौट कर न आया 

कई दिन भर उसे याद किया

 मन को दुःख पहुंचाया 

जब आगत को देखा जाते |

आशा सक्सेना 


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