आया
सावन का महीना
बाग़ में झूला डलवाया उसने
अपने भैया से नीम के पेड़ पर
लकड़ी की पटली
रस्सी मंगवाई बीकानेर से |
खूब
ऊंची ऊंची पेंग भरी
बड़ा
आनंद आया झूलने में |
सहेली को लेने आए जीजा जी
वह चली ससुराल खुशी से
वह देखती रही राह
अपने प्रियतम की |
आते ही उल्हाने दिए
क्यों न याद आई उसकी
वह कब से राह देख रही थी
कैसे भूले राह घर की |
कुछ दर की नौक झोंक शिकायतें
फिर मेल मिलाप हुआ धीरे से
वह जल्दी से तैयार हुई
अपनी ससुराल जाने के लिए |
आशा सक्सेना
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