राम तुम्हारी नायक छवि ने 
जन मानस में वास किया 
प्रजावत्सल राजा को 
उसने सिंहासनारूढ़ किया |
तुम्हारे असाधारण गुणों को 
कोई यूं ही याद नहीं करता 
वे थे सबसे भिन्न 
सभी जानते थे |
सब के प्रति व्यवहार तुम्हारा 
स्नेहपूर्ण होता था 
सदा तुम्हारा हाथ 
न्याय हेतु उठता था |
जाने कितने गुण छिपे थे 
रूपवान व्यक्तित्व में 
इसी लिए तुम विशिष्ट रहे 
जन जन के मन में |
पर राम मुझे है 
एक शिकायत तुमसे 
तुमने क्यूँ अन्याय किया 
अपनी पत्नी सीता से |
एक पत्नी व्रत धारण किया 
वन वन भटके जिसके लिए 
पर निकाल बाहर किया 
एक अकिंचन के कहने से |
क्या कोई कर्तव्य न था 
गर्भवती सीता के प्रति 
जब कि जानते थे 
दोष न था उसमें कहीं |
अग्नि परीक्षा उसने दी थी 
क्या वह पर्याप्त न थी 
वह पृथ्वी  में समाई 
तुम्हारी आत्मा पर बोझ हुई 
क्या यह अन्याय न था तुम्हारा 
फिर भी लोग तुम्हें  पूजते हैं
आदर्श तुम्हें मानते हैं |
आशा 




