21 अक्तूबर, 2018

कहाँ कमी रह गई



कहाँ कमी रह गई
बच्चों के पालन पोषण में  
  संस्कार विहीन
 पैदा हुए |
कभी कभी ऐसा लगता है
 बदल तो न गए हों
या मुझमें ही कोई
 कमी रही हो
जो मैं  ठीक  ढंग से
 उनके व्यवहार को
 सही दिशा न दे  पाई
पर अन्दर
 झाँक कर देखा
आत्म विश्लेषण लिया
कहीं कोई कमी
 न दिखाई दी
किसको दोष दूं 
खुद को या  प्रारब्ध को
या भगवान की
 दी हुई सजा मानू
जाने किस जन्म की 
सजा दी है मुझे |

आशा

19 अक्तूबर, 2018

दमकते दीप घर दहलीज




घर-घर सजा
बिजली की लड़ियों से
रौशन हर कोना हुआ घर का
अब हो रहा इन्तजार
लक्ष्मी के आगमन का |
जगमगाते दीप हर लेते तम
एक अनोखा मंजर होता
नन्हें नन्हे जलते दीपकों का  
जो टिमटिमाते रात भर
हवा के झोंकों से भी न डरते
डट कर सामना करते
यह शक्ति उन्हें मिलती
लक्ष्मी की कृपा से |
बच्चे मगन पटाखों का
कर रहे इन्तजार बेसब्री से
घर में बने पकवानों का
जब तक पूजा नहीं होती
वे बेसब्री से राह देखते |
है दीपमालाओं का त्यौहार
प्रेम प्रीत का उपहारों का
यह लक्ष्मी पूजन का त्यौहार 
प्रेम प्रतीक खुशियों का त्यौहार
सारे साल रहता इन्तजार इस  का |



 


आशा

18 अक्तूबर, 2018

माँ


हे जग जननी
जय हो माँ तेरी
रोज तुम्हें ध्याता
पूरी करो अभिलाषा |
पूए साल राह देखता
तेरे आने की तेयारी करता
आशा कामना पूर्ति की करता
सारी रात जगराता करता
उपवास रोज रखता
भजन कीर्तन में व्यस्त रहता
पूर्ण करो मेरी आशा
जय जय जय हो
जगदम्बे माता |


आशा

17 अक्तूबर, 2018

सबब अशांति का



अनगिनत जल कण उड़ते
बहते हुए झरने से
कोलाहल बेवजह होता
गिरते हुए निर्झर से
कुछ ऐसा ही हाल हुआ
प्रश्नों का अम्बार लगा
क्यूँ, क्या, किस लिए,
किसके लिए और
 न जाने क्या क्या ?
क्या लाभ बेमतलब
प्रश्न करने का
जब सही उत्तर  न मिले
उत्सुकता तो शांत न होगी
छोटी छोटी बातें
मन में घर कर जाएंगी
विकृत रूप में सामने आएंगी
सार कुछ न निकलेगा
ज्ञान पिपासा शांत न होगी
आँखों देखा सच
कानो सुनी झूट
बिना बात बातों को तूल देना
है कहाँ की सभ्यता
बात का बतंगड़ बनाना
शोभा नहीं देता
कुछ तो सबब हो
कारण जब स्पष्ट होगा
बातों में वजन होगा
ठोस सबूत होगा
व्यर्थ अनर्गल बातों से
कुछ लाभ नहीं होता
सबब बहस का
स्पष्ट होना चाहिए
व्यर्थ की बातों में
कुछ हासिल नहीं होता
बेवजह बहस का मुद्दा
अशांत मन करता
अकारण का कोलाहल 
ध्वनि प्रदूषण ही बढ़ाता
बात बात में मन में
दरार आ जाती  है
जो बढ़ती ही जाती  है
प्रश्न वहीं रह जाते है
उत्तर नहीं मिल पाते
हम मुद्दे से भटक जाते हैं|
झूठे वादों पर टिक नहीं पाते
यह भी भूल जाते हैं कि
यहाँ आने का सबब क्या था
सब की नज़रों से गिर जाते हैं |


आशा







16 अक्तूबर, 2018

न जाने किसकी नजर लगी



मेरी खुशियों को
न जाने किस की
नजर लगी 
सह न पाए लोग
मैं जब हंसी |
रोने पर तो बहुत
तसल्लियाँ मिलीं 
पर सब सतही
बातों की दूकान लगीं |
खिल्ली उड़ाने से
 खुदको रोका क्यूँ कि
दोनो हाथ बंधे हैं
 संस्कारों से |

आशा

15 अक्तूबर, 2018

दशहरा


दशहरा मिलन
की बेला आई 
बड़ा था बच्चों को 
इंतज़ार इसका 
नए कपडे,नए जूते
  और  मिठाई 
पाने को था
बेकरार मन 
सबसे बड़ा लालच था 
रावण दहन 
करने जाने का 
वहां पहुँच 
राम जी की सवारी 
देखने का 
दस शीश
 क्या सच में
 होते रावण के ?
हर बार यही प्रश्न 
मन में उठता था 
पर किसी के उत्तर से
 न होती संतुष्टि 
पर दशहरा मैदान जाने की 
उत्सुकता कम न होती 
रोजाना दिन गिन कर 
कटते दिन |
आशा

14 अक्तूबर, 2018

मन चाहता








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काली कजरारी
 आँखें तेरी
 गहराई उनमें
झील सी 
 मनमोहक 
अदाएं उनकी
उनमें डूब जाने
 को दिल होता
अधर तेरे
 सुर्ख गुलाब से
  दंतपंक्तियाँ
 अनार सी

अधर चूमने  का
 मन होता
काली जुल्फों से
ढका मुख मंडल
प्यार दुलार से
 बड़े जतन से 
उन्हें सम्हालने को
 मन चाहता 
मीठी मधुर
 स्वर लहरी तेरी 
सुनते रहने को 
मन चाहता |
आशा