13 जनवरी, 2024

अन्तराष्ट्रीय हिन्दी दिवस पर

 

देखी पोस्ट अंतराष्ट्रिया हिन्दी दिवस पर

मन हुआ  अपार प्रसन्न

 देख कर भाषा में परिमार्जन

हिन्दी  का कोई मुकाबला नहीं 

किसी अन्य भाषा से  |

भारत में जहां भी जाएं 

हिन्दी सरलता से बोली जाए

यह राष्ट्रीय भाषा 

कहलाए गलत क्या है

जरूरी नहीं कि 

अन्य भाषाएँ नहीं  सीखें

 आवश्यक है उन के गुलाम 

न बनें  रहने की |

हमें गर्व है अपनी भाषा पर 

 उसके साहित्य पर

जहां जाते हैं भूरिभूरि 

प्रशंसा पाते हैं 

हिन्दी साहित्य पर

हिन्दी कवियों की 

तो बाढ़ लगी है

दिल खोल कर लिखते है  

खुले दिल से गाते हैं |

भारत की  अपनी  

भाषा है हिन्दी

उसके माथे पर

 बिंदी सजती 

प्रयत्न जारी रहेंगे 

इसकी प्रगति पर 

हमें अभिमान है 

अपनी भाषा पर |

आशा सक्सेना 

12 जनवरी, 2024

हाइकु

 


१-कड़वे  बोल

बोलने के पहले

करो विचार

२-मधुर भाषा

हमारा मन मोहे

रिझाने लगी

३-दो बोल मीठे

सारी  कटुता धुली

मन निर्मल

४-वीणा के तार

सुर में ही सजते

मधुर होते

५- स्वर सजाए  

मधुर गीत गाए

मन खुश है


आशा सक्सेना    

11 जनवरी, 2024

कल का पर्व

 


आने को है संक्रांति पर्व

बच्चों में अभूतपूर्व उत्साह

पिछले सप्ताह ही डोर लाए

 लाए पतंग छोटी बड़ी रंग बिरंगी |

माझा सूता  जोत बांधी

 की तैयार पतंग

कल  सुवह से ही छत पर

जाकर उडाएगे पतंग

तरह तरह  की आवाज

छतों पर  सुनाई देंगी

वो काटा यह काटा, ढील दे,

पेच लड़ाएगे  जोर से |

 पतंग कटते ही 

आवाज उठेगी लाड़ी आई है

शोर भी गजब का होगा

 बच्चे किलकारी भरेंगे

अम्मा के बनाए

 लड्डुओं को खाएंगे

अपन मित्रों को खिलाएंगे |

मेरी पतंग अकेली 

जब उड़ान भरेगी ऊँचाई पर 

यदि काटी गई 

होगी विलीन नीलाम्बर में |

मन होगा उदास

 जब रह जाएगी अकेली 

बेग से नीचे गिरेगी 

 बच्चे कहेंगे हराया है |

आशा सक्सेना     

10 जनवरी, 2024

मन आहत होता


सूनी आँखे हैं  आंसू न रहे अब 

मन टूट गया दुनिया देख 

जब भी कोई समाचार पेपर में पढ़ते

सोचने पर बाध्य होते |

न रही संवेदना लोगों में 

खोज रहे हैं सब ओर उसे  

मन में कटुता और बढ़ जाती

जब भी कोई बहस देखती टीवी में |

सम भाव से जीने नहीं देते

 मन को कई बातें सही प्रतीत नहीं होतीं

 पर उन्हें जैसी वे हैं वही देखना पड़तीं 

मन मसोस कर रह जाते |

 बढ़ती दरिंदगी पर लेख पढ़ कर 

 देख महिला जागरण पर भाषण 

कहने को तो महिलाओं का उत्थान हो रहा 

पर क्या वास्तव में जो दिखाई देता 

वह वैसा ही होता है समाज में |

 नेता भी दोहरी मानसिकता के होते 

मंच पर और घर पर 

व्यवहार अलग अलग होता  

 घरेलू हिंसा से बाज नहीं आते 

 मुंह पर मुखौटा लगा रखा है |

आशा सक्सेना 

            

09 जनवरी, 2024

आत्म विश्वास

 


कहाँ से आए हो  इतनी देर से क्यों 

 मैंने तो  सोच लिया था

मुझे तुम भूल गए होंगे अब तक

किसी और से नेह लगा बैठे |

अपने मन में कोई अच्छे

ख्याल क्यों ना आए

मन चिंता से भरा रहा

किसी ने समझाया क्यों नहीं |

हर समय आशंका से घिरे रहना यह ठीक नहीं

मुझे भय क्यों रहता  है तुमसे बिछुड़ने का  

जब  मुझ में कोई कमी नहीं

फिर  दूसरों पर भरोसा क्यों नहीं मुझको |

अपने मन पर नियंत्रण कैसे रखूँ

कैसे मन को  समझाऊँ शंकाओं से दूर रहूँ

जब मुझमें कोई कमीं नहीं वह

मुझसे  दूर न रह पाएगा |

अपने आत्म विश्वास से मुझे कैसे डिगा पाएगा

मैं सीता सी पवित्र  हूँ सीता ही रहूँगी

राम से कोई मुझे अलग न कर पाएगा

चाहे कितने भी प्रपंच किये जाएं|

आशा सक्सेना

 

08 जनवरी, 2024

महिमा श्री राम की

 

महिमा श्री  राम की

प्रभु  राम बसे मेरे मन में

यह पहले एहसास न हुआ था  

 जीवन में  गति आते ही

प्रत्यक्ष दर्शन किये राम के |

पहले कोई आस्था न थी धर्म पर  

ना थी श्रद्धा विशेष किसी धर्म पर

जैसे ही माया मोह  में लिप्त  हुए

 जान गए कैसे झंझटों से मुक्ति हो |

 धर्म पर आस्था की महिमा जानी  

दसियों जगह घूमें भटके

मन की  शान्ति की खोज में

समस्याओं के निदान के लिए |

 पर कोई हल न मिला  

तब अपने मन में राम को खोजा |

 पा कर राम को वहां  

 शान्ति का अनुभव किया

 अब चारो ओर  मुझे

 दिखाई देते श्री  राम |

आशा सक्सेना

 

06 जनवरी, 2024

जिन्दगी चमक दमक से भरी

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चमक दमक से भरी है

जिन्दगी है आज की

लोग जीते हैं आधुनिक जीवन

अंतर से खोखले रह गए |

हम भी रहे इसी श्रेणी में

जाने कैसे दोहरा जीवन जीने लगे

अमुभव न कर पाए |

एक दिन जब झटका लगा

गिरे जमीन पर

झटके को महसूस किया

भरी आँखों से देखा

आसपास कोई न था सहारे के लिए |

अपने को बहुत असहाय पाया

जान लिया कहाँ जी रहे थे

किसी से सहारे की

कोई आशा न देख

कोई आशा न थी

अश्रु जल बह्चला बेग से |

आशा सक्सेना

से भरी है

जिन्दगी है आज की

लोग जीते हैं आधुनिक जीवन

अंतर से खोखले रह गए |

हम भी रहे इसी श्रेणी में

जाने कैसे दोहरा जीवन जीने लगे

अमुभव न कर पाए |

एक दिन जब झटका लगा

गिरे जमीन पर

झटके को महसूस किया

भरी आँखों से देखा

आसपास कोई न था सहारे के लिए |

अपने को बहुत असहाय पाया

जान लिया कहाँ जी रहे थे

किसी से सहारे की

कोई आशा न देख

कोई आशा न थी

अश्रु जल बह्चला बेग से |

आशा सक्सेना