28 मई, 2020

मानवता





मानवता -

हुई मानवता शर्मसार
रोज  देखकर  अखवार
बस एक ही सार हर बार
मनुज के मूल्यों का हो रहा हनन   
 ह्रास उनका परिलक्षित
 होता हर बात में
आसपास क्या हो रहा
 वह नहीं  जानता
जानना भी नहीं  चाहता
है लिप्त आकंठ 
निजी स्वार्थ की पूर्ति में
किसी भी हद तक जा सकता है
सम्वेदना की कमीं हुई है
दर्द किसी का अनुभव न होता
वह केवल अपने मे
 सिमट कर रह गया है
सोच विकृत हो गया है
दया प्रेम  क्या  होता है
 वह नहीं जानता
 वह भाव शून्य  हुआ है 
मतलब कैसे पूरा हो
बस  वह यही जानता
आचरण भृष्ट चरित्र निकृष्ट
और क्या समझें
है यही सब चरम पर
मानवता शर्मसार हुई है
अनियंत्रित व्यबहार से 
चरित्र क्षरण  हो गया है 
आए दिन की बात 
समाज में विकृतियों का आवास
यह  हनन नहीं है तो क्या  ?
मानव  मूल्यों का |

27 मई, 2020

शलभ



ढलने लगी  शाम
धुंधलका बढ़ने लगा
रात्रि ने किया आगाज
शमा जली महफिल में
 रौशन समा होने लगा
 वायु बेग से लौ उलझी
 हिलाने डुलने लगी
शमा में आया निखार
अनोखा रंग जमा महफिल में
मौसम खुशरंग हुआ
चंचल चित्त शलभ तभी  
हुए आकृष्ट शमा की ओर
गाते गुनगुनाते
 खिचे चले आए
उस ओर जहां थी रौशनी
उन्हें भय नहीं था
निकट जाने का
पहले पंख जले उनके
फिर भी न हटे वहां से
पूरे जोश से फिर से उड़े
पहले लड़खड़ाए फिर सम्हले
अब इतने करीब आए
  कि जान ही भेट चढ़ा  बैठे
 रहा संतोष उन्हे इस बात का
कि शमा का साथ पा लिया
प्रेम प्रदर्शन किया  
पल भर को ही सही
शमा रात भर जलती रही
रौशन किया महफिल को
परहित के लिए
पर  शलभ हुए उत्सर्ग
शमा का साथ पाने के लिए
अपना प्रेम शमा के लिए
 सब को दर्शाने के लिए |
आशा  
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26 मई, 2020

कोशिश



हर बार असफलता हाथ लगी
कितनी कोशिश की थी  मैंने
सफलता से दूरी अधिकाधिक हुई
जब भी चाहा नजदीकियां उससे  बढाना  |
पर हार नहीं मानी अपनी
चौगुने उत्साह से बड़ी लगन से
पूरी शिद्दत से यत्न किया है अब तो
कोशिश में कमी कहाँ है ?
अब तो जान कर ही दम लूंगी
फिर से कोशिश जी जान से करूंगी
मुझे हार स्वीकार नहीं है
 सफलता हाथ न आएगी जब तक
कोशिश करती रहूंगी |
कोशिश अनबरत  उसी लगन से होगी
किसी भी तरकीब से सांझा कर लूंगी
प्रयत्न में कमीं कभी ना होगी
 हार से बच कर रहूँगी |
कोशिश कभी व्यर्थ नहीं जाती
सफलता के लिए होती आवश्यक
है मूल मन्त्र सफल होने का
उस पर अडिग रहूँगी |

आशा


24 मई, 2020

धटनाएं आज और बीते कल की


इस सदी में जन्मी तो नहीं हूँ मैं
पर हूँ अवश्य गवाह
 होने वाली गतिविधियों की
सोचती हूँ कितनी तीब्र गति से 
 दुर्घटनाएं होती हैं ?
कुछ समय बाद याद ही नहीं रहेगा
 क्या हुआ था पर ऐसा नहीं है
वे अपने पीछे
 यादों के चिन्ह छोड़ जाती हैं
समय पा  यादों का जख्म
 अब भरता नहीं है
और अधिक गहरा हो जाता है
 अंतर स्पष्ट दिखाई देता  है
 पहले की और आज की घटनाओं में
अब पहले सा युग नहीं रहा
 मनुष्य अब  आत्मकेंद्रित हुआ है
पर यह भी पूरी तरह सत्य नहीं है
कुछ लोग आज भी हैं ऐसे
 जो  दूसरों का दर्द समझते हैं
समय  पर मददगार होते हैं 
 स्वार्थी नहीं हैं
हैं प्रशंसा के पात्र मतलबी नहीं हैं
मैंने भी उनसे ही  शिक्षा ली है
 निश्प्रह हो कर  जो  बन सके
 मदद  कर देती हूँ
रखती हूँ मन बड़ा अपनापन  लिए
मेरे हाथों में अधिक  कुछ नहीं है |
आशा