19 सितंबर, 2023

मेरी शुभ कामना

 

मेरी शुभकामना

मन आनंद विभोर है कि मेरी दीदी आदरणीया आशालता सक्सेना जी का एक और नवीन कविता संग्रह, ‘साँझ की बेलाशीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है ! यह उनका अठारहवाँ कविता संग्रह है ! एक साहित्यकार के जीवन में यह निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी उपलब्धि है ! ‘साँझ की बेलासे पूर्व उनके 17 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ! और हमें गर्व है कि यह उपलब्धि मेरी दीदी श्रीमती आशा लता सक्सेना जी ने अपने अथक एवं अनवरत प्रयासों से हासिल की है !

दीदी में लेखन की गज़ब की क्षमता है और वे जो भी लिखती हैं वह पाठकों के हृदय पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है ! कई वर्षों से स्वास्थ्य समस्याओं से निरंतर ग्रस्त रहने के उपरान्त भी उनके लेखन की गति तनिक भी शिथिल नहीं हुई बल्कि बढ़ी ही है !

समय के साथ-साथ दीदी के लेखन में दिन दिन निखार आया है ! रचनाओं में संवेदना का स्तर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हुआ है और उनके विषयों का फलक तो जैसे आकाश से भी विस्तृत है ! उन्होंने हर विषय पर अपनी कलम चलाई है ! उनके भावों में अतुलनीय गहराई है और वैचारिक स्तर पर भी रचनाएं चिंतनीय, गंभीर एवं भावप्रवण हैं ! उनकी रचनाओं की भाषा सरल, सहज एवं सम्प्रेषणीय है और पाठकों के हृदय पर सीधे दस्तक देती है ! मुझे बहुत गर्व है कि दीदी साहित्य के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं और उनका लेखन नवोदित साहित्यकारों के लिए प्रेरणा का अद्भुत स्रोत है ! मेरी अनंत शुभकामनाएं उनके साथ हैं ! ‘साँझ की बेलाकी मुझे अधीरता से प्रतीक्षा है ! आशा है यह जल्दी ही पाठकों के हाथ में होगी और अन्य पुस्तकों की भाँति ही इसे भी पाठकों का प्यार प्रतिसाद अवश्य मिलेगा !

अनंत शुभकामनाओं के साथ,

 

साधना वैद

33/23, आदर्श नगर, रकाब गंज

आगरा, उत्तर प्रदेश

18 सितंबर, 2023

शब्दों का मान

 

खोजा मन के अंदर बाहर 

सिर्फ वही नहीं

दो शब्द रंगे गए

दूसरे शब्दों में वे  हिरा गए कहीं

मेरे भाव भी गुम हैं

किसी अंधेरी कोठरी में |

मेरी  खुशी कहीं गुम हो गई

जब ठुकराई गई सारे समाज से  

किसी ने ना अपनाया  समाज में

दुःख बहुत हुआ

खुद के नकारे जाने पर |

  यह हाल है आज

शब्दों की दुनिया का

सम्हाल नहीं पाए खुद को

नाही अन्यों को|

जो सकारथ हुआ |

 है निराली शब्दों  की दुनिया

जिसने भी चाहा उनको

संपन्न किया भाषा को

उसके लालित्य को |

उनका उपयोग किया दिल से

पलट कर ना देखा क्या लिखा

उसका अर्थ क्या निकला

किसने सही रूप दिया उसको |

आशा सक्सेना    

  

17 सितंबर, 2023

आस पास जल ही जल

 हर ओरजल ही जल 

जलमग्न हुए नदी किनारे के

 कच्चे मकान  |

बड़े कष्टों से बनाया था जिनको 

वह देखती रही असहाय सी 

कुछ भी उसके हाथों में न था

 केवल देखने के सिवाय |

 तिनका तिनका  जमा किया  सामान को 

बहुत परिश्रम किया था

 एक एक सामान सहेजने में  

मन में रोने के सिवाय कुछ ना था |

प्रकृति ने कोप ऐसा किया 

जीना मुश्किल कर दिया 

कभी मन ने सोचा 

यह सजा तो नहीं 

ईश्वर प्रदत्त 

नोई भूल यो नहीं हुई 

आज वन्दना में |


आशा सक्सेना 


 सुख दुःख सब याद करते

पर दुःख से कम कोई नहीं

जितना उसे याद करते

उसे भूल नहीं पाते

सभी जानना चाहते कारण उदासी का

कहते गम खाओ किसी से पंगा ना लो

समझोता करना भी सीखो

खुशियों से हाथ मिलाओ

पर तुम इनसे समझोता ना कर पाते

मन ही मन असंतुष्ट रहते

कोशिश भी करते पर असफलता ही हाथ लगती

अपना प्रारब्ध मान इसे

गहरी उदासी में खो जाते

तभी मन की आवाज सुनते

फिर से कोशिशों में जुटते

मन कहता कभी उसकी भी सुनो

फिरसे प्रयत्नों में जुट जाते

और सफलता पाते

कभी हारने को तैयार  नहीं होते  

यही सीखा है समाज से आगे बढ़ो

हार को नकार दो समय का सदुपयोग करो उपहार में जीत को पल्ले से बाधो

आगे बढ़ने की ठानो सही राह पर चलकर

सलाह को सत्कार करो |  

16 सितंबर, 2023

मन मानी करने का नतीजा

 


क्या कभी यह भी सोचा

नतीजा क्या होगा मनमानी का  

सोते जागते एक ही गीत गाया तुमने  

हमने जो सोचा सही सोचा |

कभी किसी से सलाह ना ली

ना ही चाही सलाह किसी की

ना मागा किसी सलाहकार का स्वप्न भी

अपनी रक्षक खुद हुई 

आगे कदम बढाने के लिए |

हुई सचेत किसी की बातों में ना आई

आत्मविश्वास भरा कूट कूट

 धरे अपने कदम उस पर दृढ़ता से

यही सफलता हाथ लगी   |

आशा सक्सेना

 

 

 

 

 

 

15 सितंबर, 2023

आज के सन्दर्भ में

 

आज के सन्दर्भ में

जब भी आपस में मिलते

तनातनी बनी रह्ती

कभी तालमेल ना होता आपस में |

कितने भी प्रयत्न किये जाते

दोनो झुकने का नाम न लेते 

किसी समस्या का निदान  न होता

क्यूंकि कि कोई सलाहकार ही नहीं मिल पाता

सही  सलाह ही नही मिलती जब 

यह पता भी नहीं चलता

 कि गलत या सही सलाह होती कैसी  

मैंने किसी की सलाह ना ली

सही सलाहकार ना  खोजा 

 यही भूल रही मेरी

अपने ही घर में आग लगा ली मैंने

सही सलाहकार न खोजा

तभी यह भी ना हो पाया

तालमेल क्या रहा

किस हद तक सही रहा |

बहुत ठोकरें  खाई फिर भी

सही राह ना चुन पाई

अब अपनी गलती

सही सलाह ना चुन पाने पर |

आँखें भी भरी  भरी रहीं पर

 अब पछताने से क्या लाभ

आगे से सतर्क हो कर 

सही चुनाव करने की कसम खाई |

किसी सही जानकारी लेकर  

समझ लेने कीअब आगे से 

 यह भूल कभी ना करने की कसम खाई 

अपने विश्वास पर ही आगे बढ़ने की बात समझी 

दूसरों की सलाह ना मानी पहले परखी जांची 

तभी  संतुष्ट हो पाई |

आशा सक्सेना 

13 सितंबर, 2023

व्यथा

                                          

                                        व्यथा तो व्यथा है 

                                                 व्यथा  किसी की जागीर नहीं

जिसे हर समय वह

चिपकाए रखे अपने सीने से |

अब तो समय बीत गया है

आम आदमी अब आम रहा 

कोई खास  नहीं हो पाया

कुछ बदलाव उसमें ना हुआ |

बचपन मैं टोका जाता था

किसी की बात मानना

कोई गलत बात नहीं

सभी की प्रशंसा पाना है |

सब की रोका टोकी

मुझे रास ना आई

घंटों रोई बिना बात

जरा ज़रा सी बात पर

पहले तो प्यार से समझाया गया

पर बात बिगड़ते देर ना लगी |

मैंने जिद्द ठानी बाहर पढ़ने की

किताबों को सच्चा साथी समझा

मन पर नियंत्रन बनाए  रखा

आगे  बढ़ने की कसम खाई |

अपना मनोबल बढाया

अपने मन की सुनी

 यही मेरे काम आई

अब प्रसन्नता आई जीवन में |

आशा सक्सेना

12 सितंबर, 2023

आत्मविश्वास हो या नहीं

 

मुझे विश्वास हैअपने पर

 और किसी पर हो या नहीं  तुम पर तो है , किसी के प्यार  पर हो ना हो

तुम्हारे प्यार की बौछार  पर बहुत कुछ बन पाऊंगी किसी उच्च पद पर आसीन हो

कभी यदि विश्वास डगमगाया मन को आघात हुआ

सोचूंगी  किसे अपना कहूं|

 एक यही बात कौन अपना कौन पराया

मुझे मालूम है बुरे समय में कोई साथ नहीं देता

गैर तो गैर होते  अपने भी   पल्ला झाड़ लेते  

मन को चोटिल कर जाते |

समय बदलते ही फिर से अपने रिश्तों की याद दिला

मन को गुमराह करने की फिराक में रहते

पर जब सफल नहीं हो पाते पीछे से बुराई करते

इन सब बातों का मुझ पर असर नहीं होता

मेरा आत्मबल बना रहता |

पर खाली समय में बीती बातें मुझे सालतीं  

मुझे अपनी गलतियों का एहसास करातीं

हर बार मन कहता कुछ सीखों

व्यवहार में सुधार करो,

 मन भी  यही सुझाव बारंबार देता

फिर भी मुझे किसी और पर विश्वास नहीं होता

कभी मुझमें सुधार होगा या नहीं

बस एक ही बार मन में रहती

कभी सुधार आएगा नहीं

 सामाजिक मुझे  कभी होने  नहीं देगा