17 जून, 2012

वहीँ आशियाना बनाया


थी राह बाधित कहीं न कहीं
कैसे आगे बढ़ पाती

जीवन कहीं खो गया
उसे कहाँ खोज पाती
जब भी कदम बढाने चाहे
कई बार रुके बढ़ न सके
वर्जनाओं के भार से
खुद को मुक्त ना कर सके 
जितनी बार किसी ने टोका
सही दिशा न मिल पाई
भटकाव की अति हो गयी
अंतस ने भी साथ छोड़ा
विश्वास डगमगाने लगा
आँखें धुंधलाने लगीं
 कुछ भी नजर नहीं आया
थकी हारी एक दिन
रुकी ठहरी आत्मस्थ हुई
विचार मग्न निहार रही
दूर दिखी छोटी सी गली
देख कर पक्षियों की उड़ान
और ललक आगे जाने की
इससे संबल मिला
जीवन का उत्साह बढ़ा
तभी हो कर मगन
वहीँ आशियाना बनाया
चिर प्रतीक्षा थी जिसकी
उसी को अपनाया  |

आशा 



12 टिप्‍पणियां:

  1. तभी हो कर मगन
    वहीँ आशियाना बनाया
    चिर प्रतीक्षा थी जिसकी
    उसी को अपनाया |

    बहुत बेहतरीन भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,

    RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

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  2. डगमग था विश्वास जब, किया तनिक जो गौर ।

    'आशा' की देखी किरण, मिला गली में ठौर ।

    मिला गली में ठौर, जहाँ पर पक्षी उड़ते ।

    बढ़ा आत्मबल खूब, सफलता जाए जुड़ते ।

    देता दीदी दाद, दिखाई रस्ता जगमग ।

    छोड़ चले नैराश्य, कदम न होंगे डगमग ।।

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  3. भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,आभार

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  4. क्या बात है!!
    आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 18-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-914 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  5. बहत खूब ....सुन्दर अभिव्यक्ति |

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  6. prakriti ham bahut kuch sikhati hai...nirasha ke charmotkarsh per hee asha ka deepak jalta hai...malik bahut ajmaata hai

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  7. सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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  8. देख कर पक्षियों की उड़ान
    और ललक आगे जाने की
    इससे संबल मिला ......very nice....

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  9. बहुत बढ़िया ! प्रेरणा तो किसीसे भी कहीं से भी मिल सकती है ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

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  10. देख कर पक्षियों की उड़ान
    और ललक आगे जाने की
    इससे संबल मिला
    जीवन का उत्साह बढ़ा
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति आशा जी.

    सादर

    अनु

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