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लिखने को बेकरार
लेखनी रुक न पाएगी
पुरवैया के झोंकों सी
बढती जाएगी
बढती जाएगी
सर्द हवा के झोंकों का
अहसास कराएगी
अहसास कराएगी
जब कभी गर्मीं होगी
प्रभाव तो होगा
मौसम के परिवर्तन की
अनुभूति भी होगी
बारिश की बूंदाबांदी
कभी भूल न पाएगी
कभी भूल न पाएगी
वे सारे अनुभव
उन बूंदों के स्पर्श को
सब तक पहुंचाएगी |
सब तक पहुंचाएगी |
यहाँ वहाँ जो हो रहा
छुंअन उसकी महसूस
होगी
प्रलोभन भी होगा
पर वह बिकाऊ नहीं है
बिक न पाएगी |
अपने निष्पक्ष विचारों का
बोध कराएगी
यही है धर्म उसका
जिस पर है गर्व उसे
वह है स्वतंत्र
अपना धर्म निभाएगी |
आशा
आशा
मार्गदर्शन देती सार्थक सुंदर कविता ...
जवाब देंहटाएंलेखनी का यही धर्म होना भी चाहिए ! सुन्दर, सार्थक एवं सरस रचना !
जवाब देंहटाएंलिखने को बेकरार लेखनी रुक न पाएगी
वाऽह ! क्या बात है !
सुंदर शब्द ! सुंदर भाव !
… बधाई !
…आपकी लेखनी से सुंदर सार्थक रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे , यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…
लिखने को बेकरार लेखनी रुक न पाएगी सत्य है यही हाल है हम सबका गहरी सोंच को दर्शाती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
बहुत बढ़िया आंटी
जवाब देंहटाएंसादर
सादर वन्दे ,आपकी प्रेरणा और मार्गदर्शन सदा ही ,आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-12-2012) के चर्चा मंच-१०८८ (आइए कुछ बातें करें!) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
यूं ही चलती रहे लेखनी ... सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआप अपने धर्म का पालन कर सही सीख देती रहें बाकी उस पर आचरण करना हमारा धर्म है..
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलिखने को बेकरार
जवाब देंहटाएंलेखनी रुक न पाएगी
पुरवैया के झोंकों सी
बढती जाएगी
सर्द हवा के झोंकों का
अहसास कराएगी
जब कभी गर्मीं होगी
प्रभाव तो होगा
मौसम के परिवर्तन की
अनुभूति भी होगी
बारिश की बूंदाबांदी
कभी भूल न पाएगी
वे सारे अनुभव
उन बूंदों के स्पर्श को
सब तक पहुंचाएगी |
यहाँ वहाँ जो हो रहा
छुंअन उसकी महसूस होगी
प्रलोभन भी होगा
पर वह बिकाऊ नहीं है
बिक न पाएगी |
अपने निष्पक्ष विचारों का
बोध कराएगी
यही है धर्म उसका
जिस पर है गर्व उसे
वह है स्वतंत्र
अपना धर्म निभाएगी |
पर आशा टिपण्णी करने कहीं नहीं जायेगी .श्रेष्ठी बोध रचाएगी .
9 दिसम्बर 2012 5:14 pm
वैसे तो लेखनी उक्त होनी चाहिए ... कवि ओर पत्रकार भी ... मार्गदर्शन है कलम ओर कवि को ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंलेखनी "स्वतन्त्र"
ही होनी चाहिए,
मगर अनुशासित
दायरे में ....
बहुत ही बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी सदा चलती रहे...
:-)
बहुत सुन्दर रचना आशा जी...
जवाब देंहटाएंनमन आपको, आपके विचारों को, और आपकी लेखनी को....
सादर
अनु