28 जून, 2015

पक्षी प्रेम



धरती जागी
अम्बर जागा
पृथ्वी  का कण कण
हुआ चेतन |
पर एक नन्हीं चिड़िया
नहीं उड़ी
ना ही चहकी
वह थी उदासी से घिरी |
कारण मौन का
स्पष्ट था
बिना दाना पानी के
वह थी  उदास |
पास आ प्यार जताया
वह कसमसाई
हलकी सी जुम्बिश हुई
चौच उसकी खुली |
वह जान गया
वह भूखी थी
पानी भी न मिला होगा
कैसे क्षुधा शांत करती |
कुछ दाने
कुछ पानी एक कटोरी में
जल्दी से ले आया
दाना उसे चुगाया |
चेतना जाग्रत हुई
पंख फैला उड़ चली
मधुर सुर गुनगुनाती
संतुष्टि का भाव लिए |
 मनोभाव जताएअपने 
दाना पानी के लिए
दयाभाव रखने के लिए
पक्षी प्रेम के लिए |
आशा

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