11 सितंबर, 2015

हिन्दी

:
हिन्दी है हिन्द की बिंदी ,मस्तक पर सुहाती |
भारत माँ के माथे पर ,वह बेमिसाल लगती ||

सहज सरल मधुर भाषा ,अपनापन दर्शाती |
जब उपयोग में आती ,मन में मिठास भरती ||


हिन्दी की निंदा ना करो ,प्रेम से पोषित करो |
जनमानस में बसी है ,उसे उचित स्थान दो ||

भोर का सपना लगी ,हमें हिन्दी की  गरिमा |
 कोई सवाल ना रहा  ,साकार हुआ सपना  ||

आशा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: