सैलाब भावनाओं का ऐसा
वह सोचती ही रह गई
कापी कलम ली हाथ में
पर मति कुंद हो गई
कैसे लिखे कितना लिखे
विचारों में उलझती गई
किस विषय का चयन करे
वह सोच नहीं पाई |
शब्दों का भण्डार अपार
उनमें ही डुबकी लगाई
लिखने की रही क्षमता
पर कलम नहीं चला पाई |
क्या यह थी कुंठा मन की
या प्रहार की चिंता थी
चेक था हाथों में
पर उसे भी न भुना पाई |
आशा
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