20 जुलाई, 2017

मनमीत



फिर एक बार आनन पर 
मीठी मुस्कान आई है ! 
जाने कैसी है बात 
पुन: चमक आई है ! 
हर शब्द साहित्य का 
कुछ तो अर्थ रखता है 
हर अर्थ में नव भाव हैं 
हर भाव में एक बंधन है 
इस बंधन में स्पंदन है 
यहीं स्पंदन में है 
निहित भाव प्रेम का 
जिसने प्यास जगाई है !
यही भाव नहीं बदलते हैं 
स्थाई भाव बंधन 
प्यार के संचार के 
जिसमें है अनुराग भरपूर 
दमकता आनन दर्प से 
दर्प का नूर कभी न मिटता 
यही है निशानी सच्चे साथी की 
जो किताबों से है दूर 
पर सत्य के नज़दीक 
हर पल नया अहसास 
जगाने में लगा है ! 


चित्र - गूगल से साभार 
आशा सक्सेना 




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