27 सितंबर, 2017

उपवन का माली



है बागबान वह इस उपवन का 
किया जिसने समर्पित 
रोम रोम अपना 
इस उपवन को ! 
बचपन यहीं खेल कर बीता 
यौवन में यहीं कुटिया छाई ! 
हर वृक्ष, लता और पौधों से 
है आत्मीयता उसकी 
हर पत्ते से वह संभाषण करता 
उनसे अपना स्नेह बाँटता 
है उपवन सूना उसके बिना 
डाली डाली पहचानती स्पर्श उसका 
जब फलों की बहार आयेगी 
तब तक क्षीण हो चुकी होगी काया 
अपनी उम्र का अंतिम पड़ाव
वह पार कर लेगा 
मिट्टी से बनी काया 
मिट्टी में समाहित हो जायेगी 
लेकिन आत्मा उसकी उपवन में 
रची बसी होगी ! 
जब नया माली आयेगा 
उससे ही साक्षात्कार करेगा 
उपवन की महक 
जब दूर दूर तक पहुँचेगी 
अपनी ओर आकर्षित करेगी 
 उसकी यादें भूल न पायेंगे ! 
है वह अदना सा माली 
लेकिन यादें उसकी 
सदा अमर रहेंगी ! 



आशा सक्सेना


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