23 जनवरी, 2019

अवसाद








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अवसाद





थी   प्रसन्न  अपना घर  संसार बना कर
व्यस्तता ऎसी बढ़ी
 कि खुद के वजूद को  भूली
वह यहाँ आ कर ऐसी उलझी
 समय ही न मिला खुद पर सोचने का
जब भी सोचना प्रारम्भ किया
मन में हुक सी उठी
वह क्या थी ?क्या हो गई ?
क्या बनना चाहती थी ?
क्या से क्या होकर रह  गई ?
 अब तो  है निरीह प्राणी
अवसाद में डूबती उतराती
सब के इशारों पर भौरे सी नाचती 
रह गई है  हाथ की कठपुतली हो कर
ना सोच पाई इस से   अधिक कुछ
कहाँ खो  गई आत्मा की  आवाज उसकी
यूँ तो याद नहीं आती पुरानी घटनाएं
 जब आती हैं अवसाद से भर देती हैं 
 मन   ब्यथित कर जाती हैं
उसका अस्तित्व कहीं  गुम हो गया है
उसे  खोजती है या अस्तित्व उसे
कौन किसे खोजता है?
है एक  बड़ी पहेली जिसमें उलझ कर रह गई है 
अवसाद में फँसी ऐसी कि
कोई मार्ग नहीं मिलता आजाद होने का
 अपना अस्तित्व खोजने  का 
  समस्याओं का समाधान खोजने का |

आशा

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