जब से नर तन पाया है
है अभिमान मुझे यही
श्रेष्ठ योनी में जन्म लिया है
अब सारे कर्ज चुकाना है
पूर्व के जन्मों में लिए कर्जों के|
यह अभिमान नहीं है
प्रभु को किया शत शत नमन है
क्यों करें अभिमान ?
मनुज का चोला पहना है
उसकी का प्रतिफल है
है अभिमान मुझे यही
श्रेष्ठ योनी में जन्म लिया है
अब सारे कर्ज चुकाना है
पूर्व के जन्मों में लिए कर्जों के|
यह अभिमान नहीं है
प्रभु को किया शत शत नमन है
क्यों करें अभिमान ?
मनुज का चोला पहना है
उसकी का प्रतिफल है
मनुज योनी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती
तभी क्यों करें अभिमान ?
तभी क्यों करें अभिमान ?
आशा |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.03.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3267 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिये धन्यवाद |
मोटूरि सत्यनारायणआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 24वीं पुण्यतिथि - मोटूरि सत्यनारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
उचित चिंतन !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएं